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आज जलवायु परिवर्तन एक गंभीर वैश्विक समस्या बनी हुई है। यही कारण है कि इस पर विचार विमर्श के लिए 190 देशों के प्रतिनिधि पेरिस में आयोजित संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मलेन में भाग ले रहे हैं।
पहले भी जलवायु परिवर्तन चिंताओं से जुड़े कई सम्मलेन हो चुके हैं, पर इतनी चिंताओं के बाद भी स्थिति में कोई सुधार देखने को नहीं मिला। विकसित देशों द्वारा विकाशील देशों को हमेशा ये कहते हुए देखा गया है कि वे अपने उद्योगों में कटौती करें जिससे वायुमंडल में कार्बन की मात्रा में गिरावट हो और भविष्य में जलवायु परिवर्तन के अंदेशा को कम किया जा सके। ऐसे में विकाशील देशों में मन में इस बात का आना लाज़मी है कि खुद को एक ताकतवर और विकसित राष्ट्र के रूप में उभारने का रास्ता जब उद्योगों और उत्पादों के गलियों से हो कर निकल रहा है तो हम क्यों राह बदलें, वो भी ऐसे लोगों के कहने पर जो खुद उन्ही गलियों के बाशिंदे हैं। जाहिर सी बात है कि जो राष्ट्र अपने अत्यधिक उद्योग और उत्पादन के बूते पर खुद को एक विकसित राष्ट्र के रूप में उभारने में कामयाब हुए है, वही विकाशील राष्ट्रों के लिए राह निर्धारित करते हैं, जिसका नतीजा होता है कि अत्यधिक उत्पाद के होड़ में अत्यधिक फ़ैक्टरियों को लगाया जाता है और इनसे निकलने वाला कार्बन वातावरण पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं, जिसका दुष्परिणाम आज साफ़ तौर पर देखने को मिल रहा है। असमय और कम बारिश, असंतुलित तापमान। कोई भू-भाग अत्यधिक वर्षा से बर्बाद हो रहा तो कहीं सूखा हज़ारों के मौत का कारण बनती है। धरती के बढ़ रहे तापमान से कई हिमसागर अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। कई विद्वान अमरनाथ में हुई त्रासदी को भी जलवायु परिवर्तन से जोड़ के देखते हैं।
हमारे पास चीन के संघाई शहर का उदहारण है, जहाँ हाल में ही हज़ारो फ़ैक्टरियों पर ताला लगा दिया गया ,क्योंकि उद्योगों से वहां का वातावरण इस कदर प्रदूषित हो गया है की लोगों को खुली हवा में सांस लेना दुशवार हो गया है। वहां की एक बहुत बड़ी आबादी वहां से पलायन कर चुकी है।
पिछले कुछ दशकों से वायुमंडल जिस कदर कार्बन उत्सर्जन के कारण दूषित हुआ है, अगर भविष्य में इन कारणों पर लगाम नहीं कसे गए तो वो दिन दूर नहीं जब वातावरण इस कदर दूषित हो जाएगा कि मनुष्य के अस्तित्व पर भी प्रश्न चिन्ह लग सकते हैं।
ऐसे में यह ज़रूरी हो जाता है कि इस सम्मलेन में जो भी निर्णय लिए जाए वो दुनिया को बेहद ज़रूरी मानते हुए लिए जाए। मानवहित के लिए ऐसे फैसले लिए जाए जो दीर्घकालिक, व्यापक और न्यायसंगत हो। ऐसी स्थिति में आम जनता की भी भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है, जीवनशैली में बदलाव, ज्यादा से ज्यादा पेंड़ पौधों को लगाना, संतुलित औद्योगिकरण के साथ साथ हर वो कदम उठाया जाना चाहिए जो पर्यावरण से प्रदूषण उन्मूलन के लिए हो।
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