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स्मार्ट के साथ क्लीन और ग्रीन बने इंडिया

 मेरी अभिव्यक्ति
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शहरों और गावों को कैसे स्मार्ट बनाया जाए, इस मुद्दे पर सरकारी ख़ेमे में जबरदस्त मंथन का दौर चल रहा है। बड़ी बड़ी बिल्डिंगें कहाँ होंगी, रिहायशी इलाके कौन से होंगे, कहाँ बाज़ार बसाना है और कहाँ मेट्रो का विस्तार होगा इस पर लगातार माथापच्ची चल रही है। लेकिन, जब देश के दो प्रमुख महानगर तमाम भौतिक संसाधनों से परिपूर्ण होने के बाद भी मानव जीवन के लिए सबसे बद्तर शहर बन जाए तो उन में आए बदलाव के कारणों को ढूँढना महत्वपूर्ण हो जाता है।
देश के दो प्रमुख महानगर आज अपने अपने तरह के प्राकृतिक आपदा के थपेड़ों को झेल रहे हैं। एक तरफ 90 लाख की आबादी वाले शहर चेन्नई की 60 फीसदी आबादी पानी से घिरी हुई है, तो वही दूसरी ओर 98 लाख की आबादी को अपने दामन में समेटे राजधानी दिल्ली अपने प्रदूषण को वजह से तब राष्ट्रीय बहस का मुद्दा बन गई जब दिल्ली हाई कोर्ट ने उसके पर्यावरण की तुलना गैस चैंबर से कर दी।
दरअसल प्रकृति जिस तरह करवट ली है, उसका इशारा किसी नई समस्या के तरफ नहीं है, बल्कि ये वही मुद्दे हैं जो कभी राष्ट्रीय तो कभी वैश्विक बहस का मुद्दा बनते हैं।
दिल्ली, गुंडगाव समेत राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और उसके आस-पास के शहरों में पेंड़ो का सफाया और उद्योगों में इज़ाफ़ा जिस तेज़ी में हुआ है उससे ना सिर्फ ज़मीन और जल श्रोत प्रदूषित हुए हैं बल्कि, वायुमंडल पर भी इसका दुर्गामी प्रभाव देखने को मिला है। दिल्ली के वायुमंडल में 2005 के हिसाब से आज 7 गुना ज्यादा प्रदूषण की मात्रा पाई गई है।
इन शहरों की स्थिति अचानक से इतनी भयावह कैसे बन गई ? इन कारणों पर कभी रोक थाम करने की कोशिश क्यों नहीं की गई ? इन समस्याओं के तह तक अगर जाने की कोशिश करें तो पाएंगे कि इन सब का कारण मनुष्य के जीवन स्तर को बेहतर, सरल और आरामदायक जीवन की खोखली चाहत और अतिमहत्वकांकक्षा उभर कर आएगी।
चेन्नई में आई प्राकृतिक आपदा के पीछे मानवी कृत ही वजह है। इस तरह के असंतुलित वर्षा के लिए वनों का कम होना, अत्यधिक प्रदूषण, वायुमंडल में कार्बन की मात्रा में वृद्धि जैसे कारण प्रमुख हैं।
प्रधानमंत्री जी भले ही पेरिस सम्मलेन में कार्बन उत्सर्जन के लिए विकसित राष्ट्रों को जिम्मेदार ठहराएं पर इन मामलों में भारत के आंकड़े भी संतोषजनक नहीं हैं। विश्व के 200 देशों के क्रम में पेड़ कटाई में भारत 10वें स्थान पर है तो वहीँ जलवायु परिवर्तन के प्रमुख कारण, कार्बन उत्सर्जन में चीन, अमेरिका और यूरोपीय संघ के बाद वैश्विक कार्बन उत्सर्जन के 6.04% हिस्से पर अपना प्रभुत्व बनाए भारत चौथे स्थान पर खड़ा है।
आज यह ज़रूरी हो जाता है कि हम अपने असीमित आकांक्षाओं और ज़रूरतों को दरकिनार कर आने वाली पीढ़ी के मद्देनज़र प्रकृति के लिए कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाए।
अत्यधिक पेड़ो को लगाना, मोटर गाड़ियों का संतुलित उपयोग समेत उन सभी तरीकों पर अमल कर आने वाली पीढ़ी को एक हरा भरा और बेहतर पर्यावरण देना हमारा कर्तव्य है। इसके लिए सरकारी महकमे को भी समझना होगा कि अभी समय की ज़रूरत ‘स्मार्ट इंडिया’ के साथ साथ ‘क्लीन इंडिया- ग्रीन इंडिया’ भी है।

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