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एड्स आज भी चुनौती

 मेरी अभिव्यक्ति
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एड्स आज सिर्फ देश ही नहीं बल्कि पुरे विश्व के लिए एक चुनौती बन गई है। अगर इसके इतिहास के पन्नों को टटोला जाए तो समझ में आता है कि एड्स का पहला वायरस अफ्रीका महाद्वीप में मिला था। उसके बाद से इसके घातक प्रभाव को यूरोप और अमेरिका जैसे विकसित भू-भागों की आबादी पर दिखा। हालाँकि की शोध में ये पाया गया कि पश्चिमी देशों में लोगों के बीच इस बीमारी के फैलने का मुख्य कारण यौन संबंध नहीं था, बल्कि नशे से धुत्त युवा जो मादक पदार्थों के सेवन के लिए इंजेक्शन का प्रयोग करते थे जिसके कारण एड्स का संक्रमण लोगों में फ़ैल सका।
देश में सबसे पहले एड्स का वायरस दक्षिण भारत के उन इलाकों में पाया गया जो हमेशा से विदेशी सैलानियों के आकर्षण के केंद्र रहे हैं। उसके बाद से आज हालात ये हैं कि भारत विश्व का तीसरा सबसे ज्यादा एड्स मरीज़ों का देश बन गया है। आंकड़ो की मानें तो देश हर 1000 लोगों में 21 व्यक्ति एड्स से ग्रसित है। भारत में इस जानलेवा बीमारी के फैलने का सबसे बड़ा कारण है असुरक्षित यौन संबंध। आज भी यौन संबंध के लिए कंडोम का प्रयोग करने में लोगों की हिचक कम नहीं हुई। ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि, अगर इसी रफ़्तार से देश में यह संक्रमण फैला तो आने वाले अगले 5 वर्षों में भारत विश्व का सबसे ज्यादा एड्स पीड़ितों का गढ़ बन जायेगा।
देश में लोगों के बीच एड्स के प्रति कम जागरूकता का ही नतीजा है कि एड्स पीड़ित को ना सिर्फ शारीरिक, मानसिक और आर्थिक रूप से कष्ट उठाना पड़ता है, बल्कि उसे सामजिक रूप से भी बहिष्कार झेलना पड़ता है। आज भी लोग ऐसा मानते हैं कि एड्स जैसी जानलेवा बीमारी मरीज़ के साथ खाने, बैठने, और छूने से फैलता है। जिस वक़्त मरीज़ को मानसिक और सामाजिक तौर पर सहारा चाहिए होता है उस वक़्त पर उनके साथ ऐसा व्यवहार उन्हें और कमज़ोर बना देता है। इस तरह के अज्ञानता का कारण है समाज की मानसिक संरचना। लोग यौन संबंध जैसे मुद्दों पर बात करने से कतराते हैं, घर या समाज में इस पर कोई खुल के बात करना नहीं चाहता।
पुख्ता जानकारी के अभाव के कारण लाखों जाने इस बीमारी के गर्त में चली गई। तो आज ज़रूरी है कि घरों में, समाज में खुल कर ऐसी बीमारियो पर चर्चा हो और पाठ्यक्रमों में एड्स की अनुकूल शिक्षा दी जाए जिससे लोगों के बीच जागरूकता बढे और इस जानलेवा बीमारी की रोक थाम की जा सके।

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