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बिहार विधानसभा के अक्टूबर और नवंबर में होने वाले चुनाव की तैयारी में सभी दल ज़ोरो-शोर से लगे हुए हैं। अपने लुभावने कसमें वादों की लिस्ट तैयार कर सभी चुनावी दंगल में कूद चुके हैं, पर कोई बिहार की जनता से तो पूछे की वो क्या चाहती है।
आज, जब बिहार अपने वर्तमान की तुलना अपने इतिहास से करती है तो कुछ भ्रष्ट नेताओं और राजनेताओं द्वारा खुद को ठगा हुआ पाती है। सम्राट अशोक के शौर्य का साक्षी रहे, चाणक्य और आर्यभट्ट की बौद्धिकता के तेज़ से नहाए हुए, गौतम बुद्ध के ज्ञान की कार्यशाला और भी ना जाने कितनी ऐतिहासिक समृद्धियों को अपने दामन में समेटे हुए बिहार का वर्तमान आज किन कारणों से विकास के परिधि से कोसों दूर है? एक गंभीर प्रश्न है।
बिहार देश का तीसरा सबसे ज्यादा आबादी वाला राज्य है, ऐसा राज्य जिसकी करीब 58% आबादी 25 वर्ष से कम आयु के लोगों की है या कहें तो देश के सबसे ज्यादा युवाओं के राज्यों में से एक है बिहार। स्वास्थ एवं चिकित्सा के क्षेत्र में भी बिहार की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। शुरू से ही बिहार अपने भौगोलिक संरचना और जीवन निर्वहन के लिए आवश्यक संसाधनों की आसानी से उपलब्धता हो जाने के वजह से विश्व के लिए आकर्षण का केंद्र था। लोग विश्व के अलग अलग कोनों से विस्थापित हो कर बिहार में बसे, पर आज आलम ये है कि नौकरी, व्यवसाय और शिक्षा के मद्देनज़र सबसे ज्यादा पलायन बिहार से होता है। देश को सबसे ज्यादा प्रशासनिक अधिकारी, इंजीनियर और डॉक्टर देने वाला राज्य, संसाधनों की ऐसी कौन सी आपदा झेला जो 2011 के जनगणना में 63.82 फीसदी साक्षरता दर के साथ उसे देश के राज्यों के शिक्षा में सबसे निचले पायदान पर खड़ा कर दिया? हालाँकि पिछले 20 वर्षों के इतिहास की तुलना में आज बिहार बेहतर हालात में है, पर स्थिति आज भी डामाडोल है।
अकादमिक शिक्षा के ख़राब स्तर, गरीबी, बिजली और पानी की पूरी आबादी तक ना पहुँच, भ्रष्टाचार, बेरोगज़ारी और सबसे महत्वपूर्ण पलायन की समस्या आज भी बिहार में प्रासंगिक हैं। सरकार बदलती रहती हैं, पर समस्याओं का कद दिन पर दिन बढ़ता ही रहा है। बिहार में सरकार जिसकी भी रही है, लोगों ने हमेशा समस्याओं का समाधान ही चाहा है।
ऐसा कहा जाता है कि राष्ट्र की राजनीति की दशा और दिशा के निर्धारण में बिहार के जनता की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। आज जरुरत आ पड़ी है की बिहार की जनता अपनी राजनैतिक चेतना को जगा कर मंडल-कमंडल, जात-पात, धर्म जैसी तुच्छ राजनीति से ऊपर उठ विकास, भ्रष्टाचार के खिलाफ और जन कल्याण के लिए अपना वोट दे।
एक तरफ जहाँ 10 साल के सुशासन, भरोसे और विकास का एजेंडा लिए नितीश कुमार अपने महागठबंधन के साथ अपना दावा ठोक रहे हैं, वही चुनौती देते हुए भारतीय जनता पार्टी अपने घटक दलों के साथ केंद्र में किए अपने डेढ़ वर्षों के काम काज़ का रिपोर्ट जानता से मांगते हुए, अपने पक्ष को जनता के बीच मजबूती से रख रही है।
बहरहाल नतीजे जो भी हों, यह देखना बहुत दिलचस्प होगा कि जनता अपने विश्वास मत से किसे बिहार का हुक्मरान चुनती है। इस चुनावी समर पर देश की नज़र है।
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