ikshit
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क्रत्यों की कायरता थी वह!
हृद्याभिलेखों से जूझते
सत्य की व्यथा थी वह!
लाया ना जा सका जिसे अधरों पर
अंतर्मन की कथा थी वह!
जो रमी रही
अखिल अवशेषों में
नहीं सदैव होने वाली
प्रथा थी वह!
वही सँवरी थी
नित्य ही
जीवन के स्वप्निल आँचल में
अतुल जीवन की
सम्यक-सकल प्रतीक्षा थी वह!
निर्णीत
जो न हो सकी
निश्चय के इच्छित प्रणों में
बन व्याकुलता
तब से आज तक
मन में समूल… सर्वदा थी वह!
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