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अब तो आवाज उठाओ सखी

awaaz
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घरेलू हिंसा के खिलाफ आवाज उठाओ सखी,
चुप रह कर न इस को बढाओ सखी,
सहना ना इस को अपनी आदत बनाओ सखी,
इस को अपनी किस्मत ना बताओ सखी,
खुद पर ऐसे ना जुर्म ढहाओ सखी,
कमजोर बता खुद को ऐसे ना बहलाओ सखी,
अपने अस्तित्व को ऐसे ना मिटाओ सखी,
दिल के घावो को अब ना छिपाओ सखी,
आँखों के आंसुओ को ऐसे ना पिओ सखी,
अपने दर्द को और ना दबाओ सखी,
दुर्घटना कहा कर खुद को बेबकूफ ना बनाओ सखी,
झूठ बोल कर दुनिया से इस को ना झुठलाओ सखी,
अपनी तकलीफ का अहसास समाज को कराओ सखी,
घुट-घुट के ना जिन्दगी बिताओ सखी,
इन्सान हो तुम भी यह जताओ सखी,
जीने का हक है तुम को भी यह समझाओ सखी,
अपनी शक्तिओ को जगाओ सखी,
इस को अपने जीवन से बहार फेंके आओ सखी,
अब तो घरेलू हिंसा के खिलाफ आवाज उठाओ सखी,
स्रष्टि का केंद्र हो तुम ये दुनिया को दिखलाओ सखी,

इस कविता को पढ़ कर एक भी माँ,बहन,बेटी अपने या किसी और के खिलाफ हो रही घरेलू हिंसा के खिलाफ आवाज उठाती है तब ही मेरी यह कविता सही मायने में सार्थक होगी और में इस कविता को पढ़ने वाले सभी पाठको से यह आशा करती हो की वह घरेलू हिंसा को रोकने लिए हमेशा प्रयास करते रहगे.
धन्यवाद

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