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देखा है मैंने

awaaz
awaaz
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कैसे मंदिर-मस्जिद ख़ुदा के लिए बनाता हूँ मैं,
जब उसके बनाये इंसानों को असमान तले ज़िन्दगी बिताते देखा है मैंने.
कैसे श्रद्धा के नाम पर हजारों लीटर दूध नाली में बहा देता हूँ मैं,
जब सड़क के किनारे भूख से तडपते लोगो को कूड़े में खाना खोजते देखा है मैंने.
कैसे पत्थर की मूर्ति को सजाने के लिए लाखों के हीरे-मोती दान करता हूँ मैं,
जब सर्द रातो में हाड़-मांस के कई पुतलो को ठिठुरते देखा है मैंने.
कैसे उस परमशक्ति के बनाये इंसानों को धर्म और जात के नाम पर बाँट देता हूँ मैं,
जब हर धर्म को उस को ही अपना आधार मानते देखा है मैंने.
कैसे धर्म के नाम पर खून की होली खेलता हूँ मैं,
जब दो बूद खून को तरसती जिंदगियो को मौत में बदलते देखा है मैंने.
कैसे दगों मे अपने पड़ोसी के घर मे आग लगा देता हूँ मैं,
जब मेरे हर दुख-सुख मे उस को साथ देते देखा है मैंने.
कैसे अद्रश्य देवियों की भक्ति मे जिंदगी गुजर देता हूँ मैं,
जब जीती-जगती नारी को पैरो तले कुचलते देखा है मैंने.
कैसे बेटियों को बराबर का हक देने का समर्थन करता हूँ मैं,
जब अपने ही घर मे कई अजन्मी बेटियों के रक्त से सने हाथो को देखा मैंने.
कैसे शान से दहेज लेता और देता हूँ मैं,
जब कई बेटियों को दहेज की बेदी पर जलते देखा है मैंने.
कैसे अपने इन्सान होने पर गर्व कर लेता हूँ मैं,
जब खुद को जानवरों से भी बद्तर बनते देखा है मैंने.

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