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प्यार हो या फिर दोस्ती बस ‘देव’ सुनना पसंद था

Indian Cinema
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‘मुझे बस देव कहो’ यह ऐसे शब्द हैं जो देव आनंद के साथ काम करने वाले हर शख्सियत के कानों में आज भी गूंजते हैं. जब कभी भी देव आनंद और सुरैया की प्रेम कहानी का जिक्र किया जाता है तो कहा जाता है कि देव आनंद हमेशा सुरैया को ‘देव’ नाम से पुकारने को कहते थे पर यह पूरा सच नहीं है.



देव आनंद को ‘देव’ शब्द से एक लगाव था और वो यह चाहते थे कि उनके साथ काम करने वाले लोग उन्हें देव ही पुकारें फिर चाहे वो उनका प्यार सुरैया हों या फिर उनका कोई करीबी दोस्त.


साहब पर खूब फबता था काला रंग


‘मुझे बस देव ही कहो’ इस बात को याद करते हुए देव आनंद का एक पुराना किस्सा याद आता है जिसके आधार पर हिन्दी सिनेमा में आए बदलाव को भी देखा जा सकता है. देव आनंद के देहांत के बाद उनकी मूर्ति का अनावरण किया जाना था इस मौके पर हिन्दी सिनेमा की मशहूर अभिनेत्री वहीदा रहमान को खास आमंत्रित किया गया.



वहीदा रहमान ने देव आनंद की मूर्ति का अनावरण करते हुए कहा कि ‘देव आनंद के साथ उन्होंने फिल्म सीआईडी की थी. उस समय तक देव आनंद हिन्दी सिनेमा के सुपरस्टार बन चुके थे इसलिए वो उन्हें फिल्म के शूटिंग सेट पर जाकर गुड मॉर्निंग मिस्टर आनंद कहती थीं. देव आनंद ने एक बार तो सुन लिया पर कुछ समय बाद कहा कि मैं कोई मिस्टर आनंद नहींहूं, मुझे सिर्फ देव कहो’.




वहीदा रहमान ने साथ ही यह भी बताया कि देव आनंद अपने साथ काम करने वाली अभिनेत्रियों को शूटिंग सेट पर ‘देव’ कहकर पुकारने के लिए इसलिए कहते थे क्योंकि देव आनंद का मानना था कि यदि फिल्म की लीडिंग लेडी उन्हें साहब या मिस्टर आनंद कहेगी तो पर्दे पर उन्हें उनके साथ रोमांस करने में दिक्कत होगी और फिल्म की कहानी की मांग के अनुसार काम नहीं हो पाएगा.



वहीदा रहमान ने देव आनंद की इस बात में हामी भर दी जिस कारण इन दोनों की फिल्मों के साथ-साथ कई गीत भी सुपरहिट रहे जैसे फिल्म गाइड का गीत ‘गाता रहे मेरा दिल’ और ‘तेरे मेरे सपने अब एक रंग हैं’, सोलहवां साल फिल्म का गीत ‘अपना दिल तो आवारा’, काला बाजार फिल्म का गीत ‘खोया खोया चांद खुला आसमान’.




देव आनंद के समय में हिन्दी सिनेमा में सिर्फ अभिनय को महत्व दिया जाता था. हिन्दी सिनेमा के सुपरस्टार, फिल्मों की चमक-धमक, तजुर्बे का रौब, यह सभी तमाम बातें अभिनय करते समय काफी छोटी हो जाती थीं. देव आनंद जैसे सुपरस्टार को कोई फर्क नहीं पड़ता था कि उनके साथ काम करने वाला व्यक्ति उन्हें क्या कहकर पुकार रहा है, चिंता केवल इस बात की थी कि दर्शक उनके अभिनय से निराश ना हों. क्या आज भी बॉलीवुड के सुपरस्टार्स में देव आनंद जैसा काम करने का जोशो-जुनून है. वास्तव में 6 सितंबर, साल 1923 को जन्में देव आनंद में अभिनय की कला को जो स्तर था उसे आज का कोई स्टार लाख कोशिशें करने के बाद भी अपने अंदर समाहित नहीं कर सकता है या यह कहें कि उनके स्टाइल को कॉपी नहीं किया जा सकता है.



मोहब्बत की और उसमें मिले दर्द का इजहार सरेआम किया

वाकई सदाबहार थे देव साहब

जिंदगी का साथ निभाता चला गया…

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