शिमला, कुल्लू और मनाली वाला हिमाचल प्रदेश अपनी प्रकृतिक छटा के लिए तो विख्यात है ही, यहाँ के कुछ वैवाहिक रिवाज भी अनोखे हैं. इन वैवाहिक रिवाजों ने हिमाचल प्रदेश के कुछ क्षेत्रों की अलग पहचान गढ़ी है. हमारे देश के अन्य राज्यों में भी शादी के कई अनोखे रिवाज हैं जिसमें भाषा और भौगोलिकता के आधार पर अंतर आ जाता है. लेकिन शादी के जिस रिवाज के बारे में आप पढ़ने जा रहे हैं, वह उन रिवाजों की सूची में शामिल है जिसके बारे में शायद आपने कभी नहीं पढ़ा होगा!
हिमाचल प्रदेश में लाहौल-स्पिति नामक इस जिले में लड़की-लड़की की शादी की अनूठी परम्परा है. अमूमन विवाह में यही होता है कि शादी तय हो जाने के बाद नियत तिथि व समय पर वर-वधू एक साथ मंडप में बैठ साथ जीने-मरने की प्रतिज्ञा करते हैं. वर अथवा वधू के न होने पर शादी रोक दी जाती है. लेकिन यहाँ ऐसी समस्याओं से निपटने का आसान तरीका व्यवहार में है. अपनी ही शादी में वर के किसी वजह से मंडप में उपस्थित नहीं होने पर यहाँ शादी रोकी नहीं जाती.
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परम्परा यह है कि अगर दूल्हा अपनी ही शादी के दिन अनुपस्थित रहता है तो उसकी जगह उसकी बहन सज-सँवर दूल्हे का वेश धारण कर मंडप में पहुँचती है. वहाँ वर के रूप में वह भाई द्वारा निभाये जाने वाली सारी रस्मों को पूरा कर अपनी भाभी को साथ लेकर अपने घर आ जाती है. सिर्फ यही नहीं, अगर दूल्हे की कोई बहन नहीं है तो उसका भाई अपने ही भाई की जगह मंडप में बैठता है और अपनी भाभी को ब्याह कर साथ लाता है.
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लाहौल-स्पिति की वर्षों पुरानी यह परम्परा आज भी कायम है. यहाँ शादी के वक्त अपने भाई के स्थान पर बहन को दूल्हा बनते देखा जाना आम बात है. इस परम्परा के पीछे कोई विशेष तर्क नजर नहीं आता है. सम्भव है कि शुभ-मुहुर्त बीत जाने के भय से ऐसा किया जाता हो!Next….
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