मौत लोगों को डराती है और सच मानते हुए भी इसे स्वीकारोक्ति मुश्किल होती है. लेकिन कुछ लोग ऐसे होते हैं जो मौत से पहले जिंदगी को बेफ़्रिकी में जीते हैं. ऐसे लोगों के लिये जिंदगी और मौत एक स्वीकृत सच है. इसलिये वो जिंदगी के हर पल को जी लेना चाहते हैं. ये एक ऐसे ही महिला की कहानी है.
69 वर्षीय इस महिला को चिकित्सीय जाँच के दौरान यह पता चला कि वह अग्नाशयी कैंसर(पैनक्रियैटिक कैंसर) से पीड़ित है. साधारण तौर पर किसी व्यक्ति के लिये ये पल मुश्किल भरे हो सकते हैं. लेकिन एमिली फिलिप्स यह सुनकर निराश हुई ना परेशान. सामान्य दिनों की तरह व्यवहार कर रही फिलिप्स ने अपना लैपटॉप निकाला और उस पर कुछ टाइप करने लगी. परिवार के सदस्यों को लैपटॉप पर उसका कुछ टाइप करना समान्य लगा.
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फ्लोरिडा की रहने वाली फिलिप्स ने चिकित्सीय जाँच के 29 दिनों में प्राण त्याग दिये. लेकिन मरने से दो सप्ताह पहले उसने अस्पताल में अपने परिवार के सभी सदस्यों को एक साथ बिठाकर पूछा कि, ‘क्या वो कुछ सुनना चाहेंगे जो उसने लिखा है?’ सभी सदस्यों ने एक स्वर में उसकी लिखी बातें सुनने की इच्छा जतायी.
पारिवारिक सदस्यों की सहमति के बाद उसने लैपटॉप खोली और सबको अपना लिखा सुनाने लगी. दरअसल उसने मरने से पहले ही अपना फ़ौतीनामा लिखा था. फ़ौतीनामा मरने के बाद परिजनों द्वारा दी गयी शोक-सूचना(श्रद्धांजलि) होती है. इसे सुन परिवार के सदस्यों के मन में उसके लिये अत्यधिक स्नेह उमड़ आया. उसके प्राण त्याग देने पर उसके परिवार के सदस्यों की प्रतिक्रिया मिश्रित थी. उसकी मौत पर परिवार के सदस्य उसपर गर्व करते हुए मुस्कुरा रहे थे. सचमुच मृत्यु से पहले अपना फ़ौतीनामा लिखना और उसे परिवार के सदस्यों को एक साथ बिठाकर सुनाना उन्हीं लोगों के लिये सम्भव है जिनके लिये जिंदगी अगर पहली सच है तो मृत्यु दूसरी..Next
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