अगर आप सोचते हैं कि मौत के साथ ही इंसान की जीवन लीला समाप्त हो जाती है तो आपको अपनी सोच पर एक बार फिर विचार करना चाहिए. इंसान की मौत कई तरीकों से होती है. कोई प्राकृतिक तरीके से दुनिया छोडता है तो कोई किसी और माध्यम से मौत के आगोश में समा जाता है. लेकिन जब हम बात एक खराब और घिनौनी मौत की करते हैं तो आज के समय में एक्सीडेंट में मरे लोग, दम घुटने की वजह से, आग में झुलसने से या किसी के द्वारा गला घोंट कर मारे जाने की तस्वीरें सामने आती हैं. बेहद कम मौकों पर मौत और भी दर्दनाक होती है जैसे बुढापे में शरीर में कीड़े पड जाना आदि लेकिन यह मौतें भी उन मौतों के सामने कुछ नहीं हैं जो प्राचीन समय में कैदियों को दी जाती थीं.
एक समय तो हिटलर था जो युद्ध में पकड़े गए कैदियों को मारने के लिए चिमनियों का इस्तेमाल करता था लेकिन उसका तरीका भी मध्यकाल में कैदियों को दी जाने वाली सजा से कम दर्दनाक था. आइए हम आपको लेकर चलें दर्द और यातना की उस दुनिया में जहां इंसान खुद ही मौत को अपने गले लगाने का इच्छुक बन जाता था. मौत के कुछ ऐसे तरीके जिनसे खुद मौत भी सिहर उठे.
आज के समय में अगर कोई स्त्री पराए मर्द के साथ संबंध बनाते हुए पकड़ी जाए तो अधिक से अधिक पति उससे तलाक ले लेता है या मारपीट कर छोड देता है. साथ ही आज गर्भपात एक आम चीज बन गई है लेकिन मध्यकाल में अगर कोई स्त्री गर्भपात कराती पकड़ी जाती या किसी से जबरन गर्भपात कराने के दोष में दोषी साबित होती तो उसे ऐसी सजा मिलती थी कि उसकी सात पुश्तें भी उस मौत को ना भूल पाएं.
ऐसी स्त्रियों के लिए मध्यकाल में एक ऐसा अस्त्र तैयार किया गया था जिसके सहारे स्त्रियों के स्तनों को तब तक खींचा जाता था जब तक वह शरीर से अलग ना हो जाएं. यह बात सुनकर आपके रोंगटे खड़े हुए ना. स्त्रियों के स्तन को तब तक खींचा जाता था जब वह वह पूरी तरह अलग ना हो जाएं. इस दौरान स्त्री दर्द के मारे मूर्छित और फिर स्तन अलग होने के बाद अधिक खून बहने की वजह से मर जाती थी. यह स्त्रियों को दी जाने वाली सबसे खतरनाक और दर्दनाक मौतों में से एक है.
पीड़ा का नाशपाती: The Pear of Anguish
आज दुनिया के कई देशों में समलैंगिकता को कानूनी मान्यता प्राप्त है. लेकिन मध्यकाल में समलैंगिकता एक जुर्म था जिसकी सजा थी मौत, एक दर्दनाक मौत.
इस जुर्म के लिए जिस प्रकिया से मौत दी जाती थी उसे पीड़ा के नाशपाती द्वारा पूरा किया जाता था. इस प्रकिया से मरने वाला इंसान मौत से पहले ही अपनी मौत को साक्षात देखता है. दर्द इतना कि दुनिया का हर दर्द इसके आगे कम लगे. इस प्रकिया में मेटल से बने नाशपाती के यंत्र को कैदी की गुदा में प्रवेश कराया जाता था और फिर उसके फलकों को खोल दिया था. धारदार और नुकीले सिरे होने के कारण कैदी को भीषण दर्द सहन करना पड़ता था. अधिकांश मौकों पर सजा प्राप्त करने वाले व्यक्ति की कुछ ही देर में मौत हो जाती थी.
यह सजा औरतों और मर्दों दोनों के लिए ही होती थी, जहां यह नुकीला हथियार पुरुषों के गुदा में प्रवेश कराया जाता था वहीं स्त्रियों की योनि में.
द रैक: The Rack
मौत का यह तरीका भी बेहद दर्दनाक और घृणित था. यूं तो हम सुबह शाम अपने हाथ-पांव को स्ट्रेच करने के लिए अंगडाई लेते हैं जिससे हमें आराम मिलता है लेकिन जब कोई हमारे हाथ बहुत तेजी से खींचे तो हमें दर्द भी होता है. ठीक इसी तरह द रैक नामक प्रणाली में इंसान को एक तख्त पर लिटाया जाता था, फिर उसके हाथ और पांव को अलग-अलग दिशा में तब तक खींचा जाता था जब तक वह अलग ना हो जाएं. इस तरह की मौत पाने वाले इंसान को घनघोर शारीरिक और मानसिक पीड़ा होती थी क्यूंकि इस पूरी प्रकिया के दौरान दोषी के हाथ और पांव को धीरे-धीरे खींचा जाता था.
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