कंप्यूटरजी के जवाब लॉक करते ही प्रतिभागी के मन में धुकधुकी होने लगती है. दर्शकों का कौतूहल अपने चरम पर जा पहुँचता है. फिर कुछ क्षणों के बीतने का इंतज़ार दर्शकों के साथ प्रतिभागी भी बड़ी शिद्दत के साथ करता है. इन बेचैनी भरे क्षणों के बीतने के साथ ही उनके मन में भावों का एक ज्वार ऊपर अथवा नीचे उठता -गिरता है…और फिर जवाब के सही या गलत होने की पुष्टि होते ही कोई खुशियों के समंदर में गोता लगाता है और कोई थोड़ी खुशी से संतोष कर लेता है. निजी चैनल ‘सोनी’ पर प्रसारित होने वाली धारावाहिक ‘कौन बनेगा करोड़पति’ मध्यम वर्गीय परिवार से आने वालों के लिए इस बड़ी दुनिया में भौतिकता के बहुत करीब जाने का सीधा और सुगम तरीका है. इस धारावाहिक ने कई चंद हजार कमाने वालों को एक ही रात में करोड़पति बनाया है. इतने पैसे जीतने के बाद उनके जीवन में कई बदलाव आए. ऐसे ही कुछ विजेता करोड़पतियों की सच्ची कहानी…..
हर्षवर्द्धन नवाथे- संस्करण 1
आईपीएस पिता के बेटे हर्षवर्द्धन नवाथे लोक सेवा परीक्षाओं की तैयारी कर रहे थे. ये वही समय था जब धारावाहिक ‘केबीसी’ छोटे परदे को नये सिरे से परिभाषित करने की शुरूआत कर रहा था. वर्ष 2000 में नवाथे ने भी इस प्रश्नोत्तरी वाले धारावाहिक में अपना भाग्य आजमाने का फैसला लिया. उनके इस फैसले ने स्वयं को सही साबित करते हुए न सिर्फ उन्हें इसका पहला विजेता बनाया बल्कि एक करोड़ रुपए की रकम भी दी. विजेता बनने के साथ ही शोहरत जैसे उनके कदमों में गिर पड़ी हो! इस रकम ने उन्हें नई गाड़ी, नया घर तो दिया लेकिन भारतीय लोक सेवा में जाने का उनका सपना उनसे दूर होता चला गया. आज वो एक कॉरपोरेट घराने के साथ काम करके सामान्य जीवन जी रहे हैं.
सुशील कुमार- संस्करण 5
बिहार के मोतिहारी में कंप्यूटर संचालक का काम करने वाले सुशील कुमार की जिंदगी रोजमर्रा के कामों में ही सिमटी थी. लेकिन केबीसी का पाँचवा संस्करण उनके लिए वह लेकर आया जिसकी चाहत हर मध्यवर्गीय परिवार में पैदा होने वाले बच्चों को होती है. इस संस्करण ने उन्हें व्यापक पहचान के साथ अच्छी-खासी रकम करीब 3.6 करोड़ रूपए दी थी. मन में भारतीय प्रशासनिक सेवा में जाने का मन था. लेकिन अब सुशील कुमार का ये सपना उस रकम और शोहरत तले कहीं दब गया है. वो रकम भाईयों के व्यवसाय और रहने के लिए बनाए गये अपने पैतृक आशियाने के निर्माण पर खर्च हो गए.
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ताज मोहम्मद रंगरेज़- संस्करण 6
‘संतान को ईलाज की आवश्यकता हो और पिता कुछ ना कर पाय तो उसका हृदय उसे बहुत कचोटता है. रात-दिन संतान के विषय में सोचने के कारण पिता की ललाट चिंता की रेखाएँ बनकर ऊपर उठने की कोशिश करती है और जल्दी ही एक स्थायी आकार बना लेती है.’ तेज मोहम्मद रंगरेज़ को केबीसी के छठें संस्करण से पहले शायद इसका इल्म भी न होगा कि यह धारावाहिक उनकी ललाट पर उठी चिंता की रेखाओं को नष्ट करने जा रहा है. इस धारावाहिक के छठें संस्करण में तेज मोहम्मद रंगरेज़ ने विजेता बनकर एक करोड़ रुपए कमाए. लेकिन इससे प्राप्त राशि से जो सबसे पहला काम उन्होंने किया वो अपनी बेटी की आंशिक नेत्रहीनता का ईलाज था. राजस्थान के उदयपुर के समीप रहने वाले रंगरेज़ ने ना सिर्फ अपनी बेटी के नेत्रों का ईलाज करवाया बल्कि गाँव की दो अनाथ बेटियों की शादी भी करवाई. इस शादी में इंतज़ाम ऐसा था जैसे यह खुद उनकी बेटी की शादी हो!
सनमीत कौर
फैशन की डिग्री और बाहर जाकर काम करने पर पाबंदी किसी के अरमानों का गला घोंटने के लिए काफी है. सनमीत कौर कुछ ऐसी ही जिंदगी जी रही थी. इसलिए उसने कार्यालय जाने वाले लोगों के लिए टिफिन सेवा का काम शुरू किया. लेकिन एक दुर्घटना ने उससे यह काम भी छीन लिया. फिर वह बच्चों को ट्यूशन देनी लगी. एक दिन ‘केबीसी’ देखते हुए उन्होंने इसके एक सवाल का जवाब भेज दिया. इस तरह वह केबीसी के हॉट शीट तक आई और 5 करोड़ जीतने वाली पहली महिला होने का ख़िताब भी अपने नाम कर लिया. ईनाम की राशि से उन्होंने अपना एक फैशन स्टूडियो खोला और आज सुखमय जीवन बिता रही है.Next….
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