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मौत पर आंसुओं से नहीं बल्कि इस तरह दी जाती हैं यहां अंतिम विदाई

उनकी मां का मृत शरीर जमीन पर सफेद कफन में लिपटा हुआ था. सभी लोग शोक सभा में, शामिल होने आए थे लेकिन उन सभी की नजरें शव पर नहीं बेटी पर थी क्योंकि वो अपनी मां को अंतिम विदाई आंसुओं से नहीं बल्कि नृत्य की मुद्राओं से दे रही थी. पिछले दिनों मशहूर क्लासिकल डांसर मृणालिनी साराभाई की अंतिम सभा में, उनकी बेटी मल्लिका साराभाई द्वारा नृत्य श्रद्धांजलि वाली फोटो सोशल नेटवर्किग साइट पर खूब शेयर की गई. इस फोटो पर दोनों तरह की प्रतिक्रियाएं देखने को मिली, जिसमें कुछ लोग ‘नृत्य श्रद्धांजलि’ से सहमत दिखे तो कुछ लोगों को ये तरीका बहुत अजीब लगा. ऐसा होना लाजिमी भी है क्योंकि मौत को एक दुखद विषय माना जाता है. जिस पर रोकर या उदास होकर ही अपनी प्रतिक्रिया दी जाती है. लेकिन आप सोचिए कि हमें अपने किसी परिजन या दोस्त की मौत पर ही रोना क्यों आता है या फिर ‘मौत’ पर रोना किस सिद्धांत या वजह से आता है.


dance tribute


कुछ खोने का सिद्धांत (सेंस ऑफ लॉस ) : किसी प्रियजन की मौत पर रोना इस सिद्धांत के कारण ही आता है, यानि जैसा कि हम सभी जानते हैं कि मरने के बाद कोई भी उसी जिदंगी में वापस लौटकर नहीं आ सकता. ऐसे में हमारे मन में कभी न लौटकर आने या उस व्यक्ति से कभी न मिल पाने का भाव जाग उठता है, इस वजह कुछ खो जाने का एहसास मन में होने लगता है और हम दुखी होकर रोने लगते हैं जबकि किसी अप्रिय व्यक्ति के मरने पर एक पल के लिए दुख जरूर हो लेकिन रोना नहीं आता. जिसका कारण है कि हमें उसके खोने का एहसास नहीं होता क्योंकि वो कभी हमारे करीब ही नहीं था. जबकि दोस्त या दुश्मन दोनों के मरने की सच्चाई एक ही है, ‘इस दुनिया से दूर जाना’. मशहूर लेखक मार्टिन फॉरमेन की किताब ‘सेंस ऑफ लॉस’ में विभिन्न कहानियों के माध्यम से इस बात को समझा जा सकता है.


new orlean death ritual

हर मौत यहां खुशियां लेकर आती है….पढ़िए क्यों परिजनों की मृत्यु पर शोक नहीं जश्न मनाया जाता है!

‘मौत एक उत्सव है’- एक अनोखा नजरिया : मल्लिका साराभाई की नृत्य श्रद्धांजलि (डांस ट्रिब्यूट) कोई नई शैली नहीं है. बल्कि ये अवधारणा तो मौत को एक उत्सव मानने वाली परपंरा का एक रूप है. जिसे मानने वाले लोग मृत्यु के बाद एक नई जिदंगी पर विश्वास करते हैं. उनका मानना है कि इस धरती पर रहते हुए इंसान कितने ही दुखों को सहन करता है. इसलिए दुख तो जीवन में है जबकि मृत्यु में तो उत्सव है क्योंकि मौत के बाद तो सभी दुखों और चिंताओं का अंत हो जाता है. दुनिया भर में इस सिद्धांत (थ्योरी) को मानने वाले लोग हैं. भारत में जैन धर्म और कबीरपंथियों को मानने वाले लोग अपने प्रियजनों की मृत्यु पर रोते नहींं बल्कि उत्सव मनाते हैं.


ghana death rituals

अपने अविष्कारों से इन महान वैज्ञानिकों ने गढ़ी अपनी ही मौत की कहानी

मौत पर अलग है इनकी परपंरा :

कबीरपंथी मौत पर निकालते हैं जूलूस

संत कबीर का अनुसरण करने वाले लोग अपने प्रियजनों की मृत्यु पर रोते नहीं हैं वो इसे एक यात्रा की तरह लेते हैं. वे  मृत शरीर को सजाकर गीत और कबीरवाणी गाते हुए शवयात्रा में शिरकत करते हैं.


घाना में सजाते हैं ताबूत

यहां लोगों को दफनाए जाने का रिवाज है इसलिए किसी के मर जाने पर उसे रंग-बिरगे ताबूत में रखकर ताबूत और शव को सजाते हैं. साथ ही मृत शरीर के साथ खाने-पीने और दैनिक उपयोग का सामान भी रखा जाता है.


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इस देश में मरने पर बैंड-बाजे और लोक संगीत के साथ प्रियजनों को अंतिम विदाई दी जाती है. जिसमें लोग जमकर नृत्य भी करते हैं…Next

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