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फेसबुक उपयोग करने वाले अब रह सकेंगे बॉस की नज़रों से दूर

फेसबुक ने गोपनीयता चाहने वाले अपने उपभोक्ताओं को नायाब तोहफा दिया है. अब फेसबुक की सेवाओं का अनुभव टोर ब्राउजर के जरिये किया जा सकता है,  वहीं टोर जिसे इंटरनेट का काला पक्ष भी कहा जाता है. इसका उद्देश्य ग्राहकों या कहें उनकी ब्राउजिंग की गोपनीयता को बरकरार रखना है. टोर एक वैब ब्राउजर है जिसे ‘स्याह या डार्क वैब’ भी कहा जाता है. हालांकि, मुख्यधारा के इंटरनेट उपयोगकर्ता के लिए यह अज्ञात है. सर्च इंजन जैसे गूगल के द्वारा इंटरनेट के इस क्षेत्र की यानी टोर की इंडैक्सिंग नहीं की गई है. यह उपयोगकर्ता के कनेक्शन को इनकोड करता है जिससे कि सरकार या अन्य संस्थान उसकी वैब क्रिया-कलापों को ट्रैक न कर सकें.




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इंटरनेट को गुमनाम तरीके से ब्राउज करना एक ऐसी बात है जिससे कार्यालय के बॉस को थोड़ी परेशानी हो सकती है, लेकिन अगर उपयोगकर्ता में आईटी दक्षता के साथ सॉफ्टवेयर कौशल है तो वे गोपनीय नेटवर्क का अनुभव ले सकते हैं. हालांकि अवैध संबद्धता के कारण ऐसी गोपनीयता के अपने ज़ोख़िम भी है. फेसबुक में सॉफ्टवेयर इंजीनियर एलैक मुफैट ने एक ब्लॉग में यह नई जानकारी और सलाह दी है कि टोर यूजर्स अब  https://facebookcorewwwi.onion पर जाकर सोशल मीडिया जैसे फेसबुक का प्रयोग कर सकते हैं. लेकिन इसका प्रयोग सिर्फ वैसे लोग कर सकेंगे जिनका ब्राउजर टोर युक्त होगा.


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ध्यान देने योग्य है कि टोर सॉफ्टवेयर का विवादों से भी गहरा नाता रहा है. इसका कारण टोर उपयोग करने वालों में से कुछ का संबंध ऑनलाइन काला बाज़ार से भी रहा है जैसे ‘द सिल्क रोड’ और ‘डॉयबोलस.’ लेकिन इस कदम के पक्ष में यह तर्क दिया जा रहा है कि इसके उपयोग से लोगों को सरकारी दमन और नियंत्रण से बचाया जा सकेगा. चीन और ईरान जैसे देशों में फेसबुक के प्रयोग पर पाबंदी है. इसलिए टोर के द्वारा लोक मीडिया जैसे फेसबुक का प्रयोग करना आसान हो जाएगा क्योंकि इससे इंटरनेट के ट्रैफिक के सटीक उद्गम स्थान का पता लगाना बेहद मुश्किल हो जाएगा.



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फेसबुक के इस कदम के कई फायदे हैं. एक तो वैसे देशों के लोग इससे जुड़ेंगे जहाँ इसके उपयोग पर पाबंदी है. इससे फेसबुक को ज्यादा राजस्व की प्राप्ति होगी. दूसरा,यह उन लोगों के लिए बहुत फायदेमंद साबित होगा जिन पर सरकार की आँखें टेढ़ी रहती है. इसके अलावा उनका अपना व्यवसाय भी फेसबुक के जरिये नई उँचाई को छू सकता है. फेसबुक के इस कदम पर यह सवाल उठना भी लाज़िमी है कि जब लोक मीडिया का उद्देश्य ही अपने जीवन के हर क्षण को लोगों के साथ साझा करना है तो गोपनीयता के प्रयास क्यों?


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कुछ लोग इसे एनएसए की साजिश बता रहे हैं ताकि गोपनीयता चाहने वाले फेसबुक प्रयोक्ता को एक मंच पर लाकर उनका डेटाबेस एकत्रित किया जा सके. खैर, फेसबुक के इस कदम से दुनिया भर की सरकारों के माथे पर लकीरें तो जरूर उभरी होगी.




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