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भगवान गणेश ने धरती पर खुद स्थापित की है अपनी मूर्ति, भक्तों की हर मन्नत पूरी होती है वहां

भगवान गणेश के कई सिद्ध मंदिरों में चिंतामन गणेश मंदिर भी हैं. पूरे देश में कुल चार चिंतामन मंदिर हैं. कहते हैं यहां भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. भोपाल, उज्जैन, गुजरात और रणथंभौर में इन गणपति मंदिरों की सिद्धियां इनकी स्थापना की चर्चित कहानियों में छुपी हैं.





भोपाल से 2 किलोमीटर की दूरी पर सीहोर में स्थित चिंतामन गणेश मंदिर की दंतकथा बेहद रोचक है. माना जाता है कि इस मंदिर की स्थापना विक्रमादित्य ने की थी लेकिन इसकी मूर्ति उन्हें स्वयं गणपति ने दी थी. प्रचलित कहानी के अनुसार एक बार राजा विक्रमादित्य के स्वप्न में गणपति आए और पार्वती नदी के तट पर पुष्प रूप में अपनी मूर्ति होने की बात बताते हुए उसे लाकर स्थापित करने का आदेश दिया. राजा विक्रमादित्य ने वैसा ही किया. पार्वती नदी के तट पर उन्हें वह पुष्प भी मिल गया और उसे रथ पर अपने साथ लेकर वह राज्य की ओर लौट पड़े. रास्ते में रात हो गई और अचानक वह पुष्प गणपति की मूर्ति में परिवर्तित होकर वहीं जमीन में धंस गई. राजा के साथ आए अंगरक्षकों ने जंजीर से रथ को बांधकर मूर्ति को जमीन से निकालने की बहुत कोशिश की पर मूर्ति निकली नहीं. तब विक्रमादित्य ने गणमति की मूर्ति वहीं स्थापित कर इस मंदिर का निर्माण कराया.




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मंदिर में स्थापित गणपति की मूर्ति की आंख चांदी की बनी है. वास्तविक मूर्ति की आंख हीरे की थी. स्थानीय लोगों के अनुसार आज मंदिर और मूर्ति की सुरक्षा के लिए रात के समय मंदिर परिसर में ताला लगाया जाता है लेकिन पहले ऐसा नहीं था. 150 साल पहले इस खुले परिसर में मूर्ति की हीरे की आंख चोरी हो गई. कई दिनों तक आंख की जगह से दूध की धार टपकती रही और आखिरकार मुख्य पुजारी के स्वप्न में गणपति जी ने आकर इस जगह चांदी की आंख लगाने का आदेश दिया. पुजारी ने इसे चिंतामन मंदिर में स्थापित गणपति के नए जन्म के रूप में माना और चांदी की आंख लगाने के अवसर पर भंडारा किया. तब से हर साल उस दिन की याद में यहां मेला लगता है.





यहां हर माह गणेश चतुर्थी पर भंडारा करने की प्रथा है. स्थानीय लोगों के अनुसार 60 साल पहले यहां प्लेग की बीमारी फैली थी. तब इसी मंदिर में लोगों ने इसके ठीक होने की प्रार्थना की और प्लेग के खत्म हो जाने पर गणेश चतुर्थी मनाए जाने की मन्नत रखी. प्लेग ठीक हो गया और तब से हर माह गणेश चतुर्थी पर भंडारे की यह प्रथा चली आ रही है. यहां आने वाले श्रद्धालु मंदिर के पिछले हिस्से में उल्टा स्वास्तिक बनाकर मन्नत रखते हैं और पूरी हो जाने पर दुबारा आकर उसे सीधी बनाते हैं.




इसी प्रकार उज्जैन में बने चिंतामन मंदिर की मान्यता है कि त्रेतायुग में स्वयं भगवान राम ने गणपति की मूर्ति स्थापित कर इस मंदिर का निर्माण कराया था. चर्चित कथा के अनुसार वनवास काल में एक बार सीता जी को प्यास लगी. तब पहली बार राम की किसी आज्ञा का उल्लंघन करते हुए लक्ष्मण ने पास ही कहीं से पानी ढूंढ़कर लाने से इनकार कर दिया. राम ने अपनी दिव्यदृष्टि से वहां की हवाएं दोषपूर्ण होने की बात जान ली और इसे दूर करने के लिए गणपति के इस चिंतामन मंदिर का निर्माण कराया. कहते हैं बाद में लक्ष्मण ने मंदिर के बगल में एक तालाब बनवाया जो आज भी लक्ष्मण बावड़ी के नाम से यहां मौजूद है. इस मंदिर में एक साथ तीन गणपति की मूर्तियां स्थापित हैं.


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