आज चारों ओर स्वतंत्रता दिवस की तैयारियां हो रही हैं, स्कूलों, दफ्तरों व सभी संस्थाओं में लोग स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं और उस समय को याद कर रहे हैं जब भारत के स्वतंत्रता सैनानियों ने अपनी जान की परवाह ना करते हुए अंग्रेजों का सामना किया था. 15 अगस्त, 1947 को कठिन परिश्रम के बाद देश आजाद हुआ, लेकिन इसे अंग्रेजों के जुल्मों से आजाद कराना इतना आसान नहीं था. अनेक जानें गईं और देश आजाद होने के बाद भी जात-पात के नाम पर कितनी हिंसा भी हुई. घर जले, लोग मारे गए, कत्लेआम हुआ, महिलाओं के साथ गलत व्यवहार हुआ, ऐसी-ऐसी वारदातें हुई जिन्हें सुन दिल दहल जाता है.
भारत में आजादी पाना कितना आवश्यक हो गया था यह वही जानते हैं जिन्होंने इसे पाने के लिए संघर्ष किया था. हमारे देश के लिए अगस्त का महीना हमेशा से महत्वपूर्ण रहा है लेकिन केवल 15 अगस्त ही नहीं, इसके अलावा भी ऐसी कितनी तारीखें हैं जिन्होंने इस इकलौती तारीख से भी पहले स्वतंत्रता संग्राम की बड़ी-बड़ी दीवारों को निडर खड़ा होते देखा है, उस लहर को महसूस किया है व इस मंजिल पर पहुंचाया है ताकि आज हम सुकून से जी सकें.
इस दिन हुआ कुछ विशेष
वह तारीख थी 9 अगस्त, 1942, जब स्वतंत्रता संग्राम की एक विशाल लहर का जन्म होने वाला था, लोगों को एकजुट कर अंग्रजों को देश के बाहर भेजने के लिए मजबूर करने का समय आने वाला था. लेकिन यह कारवाह केवल इसी तारीख से नहीं चला था, बल्कि इससे पहले ही आग की लपटों ने अपना रूप धारण करना शुरु कर दिया था बस इंतजार था तो 9 अगस्त को मिलने वाली उस आखरी आहूति का जिसने इन लपटों को आसमान जितनी ऊंचाई दी.
यह तब की बात है जब अंग्रजों ने भारतीयों को बिना किसी औपचारिक सूचना के जर्मनी के खिलाफ होने वाली लड़ाई में ब्रिटेन का हिस्सा बना दिया था. इस बात का अनुभव होते ही भारतीय कांग्रेस गुट में गुस्सा छा गया और उन्होंने इस बात का विरोध किया. चालाक ब्रिटिश सरकार ने इस बात का हल निकालते हुए, मार्च 1942 में कांग्रेस के सामने ब्रिटेन की सेना में भारतीयों के होने का प्रस्ताव रखा और बदले में भारत को इस लड़ाई के बाद आजाद करने की बात कही लेकिन कांग्रेस को यह प्रस्ताव मंजूर ना था.
जब मांग की गई पूर्ण आजादी की…
इस बीच कितनी ही हिंसा हुई, लोगों पर ब्रिटिश सरकार द्वारा अत्याचार किए गए, गरीबों को बिना किसी वजह से बंधी बनाया गया, और भी कितनी ही मनमानी की गई जिसका कोई अंत ना था. यह सब देखते हुए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने एक बड़ा फैसला लिया और इन दिक्कतों का अंत करने का निश्चय कर लिया.
फिर आया वो दिन, 14 जुलाई, 1942, जब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने एक संकल्प का निर्माण किया जिसके अंतर्गत ब्रिटिश सरकार से पूर्ण स्वतंत्रता की मांग की गई. यह सिर्फ विनती या फिर जानकारी देने लायक बात नहीं थी बल्कि अंग्रेजों के लिए एक चुनौती थी जिसमें यह लिखा गया था कि यदि यह मांग पूरी नहीं की गई तो समस्त भारत विद्रोह पर उतर आएगा और कांग्रेस लीडर ‘जन सविनय अवज्ञा’ करेंगे. लेकिन शायद समय को कुछ और ही मंजूर था.
भारत की उस मांग को किया अनदेखा
ब्रिटिश सरकार उस समय ब्रिटेन-जर्मनी विश्व युद्ध 2 में व्यस्त था जिसके चलते भारत की इस पुकार को काफी हद तक नजरअंदाज भी किया गया था. इतना ही नहीं खुद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक नेता श्री सी. राजगोपालाचार्य ने संगठन को छोड़ दिया, उनका कहना था कि यह समय सविनय अवज्ञा या किसी भी तरह की मांग करने के लिए ठीक नहीं है और हमें इससे अभी कुछ भी हासिल नहीं होगा. राजगोपालाचार्य की इस बात का समर्थन करने वाला भी उस समय कोई ना था क्योंकि वरिष्ठ नेताओं की देख-रेख में यह संकल्प सिर चढ़ चुका था.
केवल राजगोपालाचार्या ही नहीं बाकी संगठन जैसे कि साम्यवादी, मुस्लिम संगठन, व हिंदू महा सभा भी इस संकल्प के हित में नहीं थी. सबका यही कहना था कि अंग्रेज अभी विश्व युद्ध में व्यस्त हैं जिस कारण हमारी यह पुकार व्यर्थ जाने वाली है.
‘करो या मरो’ का था नारा
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को बेशक अपनी पहली कोशिश में असफलता मिली लेकिन भारत का यह संकल्प वहीं थम जाने वाला नहीं था. 7 अगस्त, 1942 को भारतीयों का एक बड़ा गुट मुंबई के गोवालिया टैंक मैदान में एकत्रित हुआ. उस दिन कुछ बहुत बड़ा होने वाला था. 8 व 9 अगस्त की आधी रात को कांग्रेस द्वारा जोर-शोर से ‘क्विट इंडिया रेजोल्यूशन’ यानि कि ‘भारत छोड़ो संकल्प’ का आह्वान किया गया जिसने कुछ समय बाद ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ का रूप धारण कर लिया. जिसे बाद में महात्मा गांधी ने ‘करो या मरो’ का नारा दिया.
जो सोचा था उससे उल्टा हुआ
भारतीयों के इस संकल्प की भनक ब्रिटिश सरकार को लग गई थी जिस कारणवश कुछ ही घंटों में पार्टी के सभी बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया. इस बीच लोगों ने हिंसा का सहारा लिया, लोगों ने सरकारी दफ्तर व घर जलाने शुरू कर दिए, चारों ओर भारत जिंदाबाद के नारे लगने लगे और बेहद सम्मान के साथ भारत का तीन रंगीय ‘तिरंगा’ लहराया गया. आजादी के इतिहास में पहली बार हुआ था कि किसी ने अंग्रेजों के राज तले भारतीय तिरंगा गर्व से लहराया था और इस काम को अंजाम देने वाले शख्स का नाम ‘अरुणा आसिफ अली’ था.
गुप्त तरीके से पहुंचाई जाती थी खबरें
भारत को आजादी दिलवाने के लिए हर किसी की ओर से बहुत मेहनत की गई जिसमें से एक था रेडियो द्वारा गुप्त जानकारी पहुंचाना. अरुणा आसिफ अली व ऊषा मेहता, जो कि विद्यार्थी थीं, दोनों ने मिलकर एक भूतलीय रेडियो स्टेशन का निर्माण किया जिसके जरिये स्वतंत्रता सैनानियों व लीडरों को जरूरी जानकारी प्रदान की जाती थी. इस स्टेशन को बेहद होशियारी से ब्रिटिश सरकार की नजरों से बचाकर चलाया जाता था.
आखिरकार मिली थी आजादी
तीन साल बाद कांग्रेस के सभी नेताओं को कैद से छुटकारा मिल गया. इस बीच विश्व युद्ध भी समाप्त हो गया था लेकिन एक बहुत अहम खबर आई कि ब्रिटेन में श्रामिक दल ने सत्ता हासिल कर ली है. यह भारत के लिए बहुत बड़ी खबर थी क्योंकि इसी के चलते भारत में पंडित नेहरु की अंतरिम सरकार को सत्ता में आने का मौका मिला था और आखिरकार भारत आजाद हुआ था.
बहरहाल भारत छोड़ो आंदोलन ने भारत को आजाद कराते समय बहुत सी दिक्कतें झेली, बदनामी भी हुई लेकिन यह कहना बिलकुल अनिवार्य है कि आज यदि हम आजाद हैं तो उस एक लहर की वजह से जिसके लिए सबकी आवाज उठी थी. इस आजादी को पाने के लिए बच्चे, बूढ़े, महिलाएं व जवान सभी उस आग में उतरे थे व उस रोशनी को और गहरा करने के लिए कितने ही लोगों ने अपनी आहूति दी.
तो आज, उन सभी लोगों व जो किसी न किसी रूप में हमारे देश के लिए स्वतंत्रता सैनानी बनकर आए थे, उनकी वो कोशिश बहुत बड़ा फल लेकर आई या नहीं, लेकिन वो ऐसे भारतीय थे जिन्होंने अपने देश को आजाद कराने के लिए अपनी जान की परवाह नहीं की. उन सभी का दिल से सम्मान!!!
Read Comments