दिल्ली चिड़ियाघर में हुए भयानक हादसे की वीडियो वायरल हो जाने के बाद सफेद बाघ विजय रातों-रात देश-विदेश में इतना चर्चित हो गया कि अब इसके कुछ अजीबो-गरीब परिणाम सामने आ रहे हैं. इस हादसे में जहां मकसूद नामक नौजवान की जान चली गई वहीं चिड़ियाघर के आसपास दुकान लगाने वाले दुकानदारों की चांदी हो गई है.
इस हादसे के बाद चिड़ियाघर में आने वाले पर्यटकों की संख्या बढ़ी है जिससे दुकानदारों की बिक्री भी बढ़ी है. चिड़ियागर आने वाले ज्यादातर पर्यटकों की रूची सफेद बाघ विजय को देखने में है. चिड़ियाघर के पास ही खिलौनों की दुकान लगाने वाले एक दुकानदार का कहना है कि आमतौर पर इस मौसम में बिक्री काफी घट जाती है वैसे भी यहां बिक्री कुछ ज्यादा नहीं होती पर इस हादसे के बाद काफी सारे बच्चे उनकी दुकान पर आने लगें हैं जो विजय जैसी दिखने वाले सफेद बाघ का मिमिएचर (बाघ वाले खिलौने) खरीदने आने लगें हैं. दरअसल टीवी पर विजय की खतरनाक तस्वीरों ने बच्चों को बेहद आकर्षित किया है.
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खैर यह पहली बार नहीं है कि सफेद बाघ ने इतनी चर्चा बटोरी हो. विजय की तरह इसके पूर्वज भी बेहद चर्चित रहें हैं. दरअसल सन 1951 में मध्यप्रदेश के रेवा के जंगलों से पहले सफेद बाघ मोहन के पकड़े जाने के बाद से ही सफेद बाघों की लोकप्रियता पूरे विश्व में बनी हुई है. हलांकि विजय के पूर्वज सकरात्मक वजहों से चर्चित रहें. गौरतलब है कि आज विश्वभर में मौजूद सभी बाघों के पूर्वज एक ही हैं. मोहन और बेगम. इस लिहाज से देखा जाए तो मोहन और बेगम सफेद बाघों की आदम और हव्वा हैं. विश्वभर में केवल 200 ही सफेद बाघ हैं और सब के सब चिड़िया घरों में.
सन 1963 में पहली बार सफेद बाघों का जोड़ा, राजा और रानी, रेवा से दिल्ली के चिड़ियाघर में पहुंचे. राजा-रानी मोहन और बेगम के ही वंशज थे. इनकों देखने के लिए सुबह से ही लंबी कतारे लगने लगीं. लोग लाईन से बचने के लिए ब्लैक में टिकटें खरीदते. प्रेस, टीवी और रेडियो ने सफेद बाघ के इस जोड़े को विश्वव्यापी लोकप्रियता दिलाई. चिड़ियाघर प्रशासन के लिए सफेद बाघ का यह जोड़ा सोने का अंडा देने वाला मुर्गी बन गया.
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विश्वभर के चिड़ियाघरों से सफेद बाघों के लिए निवेदन आने लगे. क्योंकि भारत में भी सफेद बाघों की कमी थी इसलिए ऐसे निवेदनों को विनम्रता से मना कर दिया जाता. पर जब निवेदन किसी देशके वीवीआईपी या राष्ट्राध्यक्ष की तरफ से आता तो कुटनीतिक संकट पैदा हो जाती. सन 1967 में तत्कालीन युगोसलाविया के राष्ट्रपति मार्शल जोसिप ब्रोज टिटो भारत दौरे पर आए थे. बातों ही बातों में उनके प्रतिनिधिमंडल ने अपने देश के लिए एक सफेद बाघ की मांग रख दी. पर दिल्ली चिड़ियाघर प्रशासन किसी भी सफेद बाघ को देने में असमर्थ था. इस कुटनीतिक संकट को विदेश मंत्रालय द्वारा राष्ट्रपति को दो समान्य रंग के बाघ भेंट करके दूर किया गया.
सन 1960 में अमेरिका ने अपने यहां के बच्चों के लिए रेवा क महाराज से 10 हजार डॉलर में एक सफेद बाघ खरीदा. एक लंबी प्रक्रिया के बाद अमेरिकी विशेषज्ञों ने मोहनी नाम की सफेद बाघिन को चुना. पर जब बात मोहिनी को देश के बाहर ले जाने की हुई तो कृषि और खाद्य मंत्रालय ने मोहिनी को इस आधार पर एक्सपोर्ट परमिट देने से मना कर दिया कि वह राष्ट्र की संपत्ति है. हलांकि वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने मोहिनी को निर्यात करने की अनुमति दे दी थी. अमेरिकी दुतावास की लंबी जद्दोजहद के बाद आखिरकार कृषि मंत्रालय द्वारा मोहिनी को निर्यात करने की अनुमति दे दी गई. अमेरिकी विशेषज्ञों ने मोहिनी को तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति ड्वाइट डी आइजनहॉवर को व्हाईट हाउस जाकर भेंट किया.
पांच दशक से अधिक समय से सफेद बाघों को दुनिया के विभिन्न चिड़ियाघरों में रखा जा रहा है और उनका प्रजनन कराया जा रहा है. जहां आम जनता के लिए सफेद बाघ मनोरंजन और आश्चर्य के विषय हैं वहीं चिड़ियाघरों के लिए ज्यादा आमदनी कमाने का जरिया.
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