भूत प्रेत के किस्से आजकल बड़ी सामान्य सी बात हो गई है. कोई ना कोई,कहीं ना कहीं ऐसा व्यक्ति मिल ही जाता है जिसके साथ कोई ऐसी घटना घटी ही होती है जो थोड़ी डरावनी और उससे कहीं ज्यादा रहस्यमयी होती है. कुछ किस्सों-कहानियों को तो हम इत्तेफाक या भ्रम बताकर टाल देते हैं लेकिन कुछ कहानियां ऐसी होती हैं जो अपने आप में एक रहस्य बन जाती हैं, “कि अगर ऐसा होता है तो इसके पीछे कारण क्या है?”
बाड़मेर (राजस्थान) का किराडु शहर ऐसे ही किसी रहस्य को अपने भीतर समेटे हुए है. एक समय था जब यह स्थान भी आम जगहों जैसा ही था. यहां पर भी लोग रहते थे, आजीविका के लिए प्रयत्न करते थे और स्वयं के लिए मौजूद सुख-सुविधाओं का भरपूर आनंद उठाते थे. लेकिन क्या कारण है कि आज के युग में, जब विज्ञान ने इतनी ज्यादा उन्नति कर ली है कि पारलौकिक कथाएं स्वयं अपना अस्तित्व खो चुकी हैं तब भी लोग रात के समय बाड़मेर के ऐतिहासिक किराडु मंदिर में नहीं जाते?
कहते हैं इस शहर पर एक साधु का श्राप लगा हुआ है. करीब नौ सौ साल पहले जब परमार राजवंश यहां राज करता था तब इस शहर में एक बहुत ज्ञानी साधु भी रहने आए थे. जब वह साधु देश भ्रमण पर निकले तो उन्होंने अपने साथियों को स्थानीय लोगों के सहारे छोड़ दिया. साधु के पीछे उनके सारे शिष्य बीमार पड़ गए और बस एक कुम्हारिन को छोड़कर अन्य किसी भी व्यक्ति ने उनकी देखभाल नहीं की. साधु जब वापिस आए तो उन्हें यह सब देखकर बहुत क्रोध आया. साधु ने कहा कि जिस स्थान पर दया भाव ही नहीं है वहां मानवजाति को भी नहीं होना चाहिए. उन्होंने संपूर्ण नगर वासियों को पत्थर बन जाने का श्राप दे दिया. जिस कुम्हारिन ने उनके शिष्यों की सेवा की थी, साधु ने उसे शाम होने से पहले यहां से चले जाने को कहा और यह भी सचेत किया कि पीछे मुड़कर ना देखे. लेकिन कुछ दूर चलने के बाद कुम्हारिन ने पीछे मुड़कर देखा और वह भी पत्थर की बन गई. इस श्राप के बाद अगर शहर में शाम ढलने के पश्चात कोई रहता है वह पत्थर का बन जाता है.
यह श्राप इतना असरदार है कि जो स्थान स्वयं ऐतिहासिक महत्व रखता है वहां ना तो कोई शोध की जाती है और ना ही इस रहस्य को सुलझाने के लिए ही कोई प्रयास होता है. अब यह कोई अफवाह है या फिर हकीकत लेकिन यह स्थान अब दिन में ही इतना भयावह दिखता है कि रात को यहां आने की कोई कोशिश भी नहीं करता.
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