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क्यों अपनी बेटी के धड़कते दिल पर पाबंदी न लगा सका औरंगजेब


सदियों से मुहब्बत, गीत-संगीत, नृत्य, मुशायरों पर समाज का पहरा रहा है. इतिहास में ऐसे कई नाम दर्ज हैं जिन्होंने प्यार, गीत-संगीत, नृत्य, मुशायरों को अपनाया पर इसका अंजाम बहुत भयावह रहा है. खासकर यदि यह काम कोई लड़की, महिला करें तो समाज को यह गवारा नहीं होता. कई बार उसे अपनी जान को भी गवाना पड़ता है. हमारे इतिहास में भी एक ऐसी ही सच्ची गुमनाम राजकुमारी की दर्द भरी दस्तां है जिसे सुनकर हमारे रोंगटे खड़े हो जाते हैं. प्रेम, गीत-संगीत, नृत्य, मुशायरों के बदले जमानें ने इन्हें ऐसा मौत दिया कि राजकुमारी की रूह आज भी अपने अधूरे प्यार को पाने के लिए भटकती हैं.


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यह सच्ची कहानी जेबुन्निसा की है. जेबुन्निसा के पिता का नाम मुगल सम्राट औरंगजेब था. औरंगजेब की सबसे बड़ी संतान जेबुन्निसा का जन्म 5 फरवरी 1639 को दक्षिण भारत के दौलताबाद स्थान में फारस के शाहनवाज खाँ की पुत्री बेगम दिलरस बानों के गर्भ से हुआ था. बचपन से ही जेबुन्निसा बहुत प्रतिभाशाली और होनहार थी. इसे बचपन से ही कविताएँ और मुशायरा का सौख था. जेबुन्निसा की मँगनी शाहजहाँ की इच्छा के अनुसार दारा शिकोह के पुत्र तथा अपने चचेरे भाई सुलेमान शिकोह से हुई, किंतु सुलेमान शिकोह की असमय मृत्यु होने से विवाह न हो सका.


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औरंगजेब के दरबार में मुशायरों पर प्रतिबंध की वज़ह से जेबुन्निसा चुपके-चुपके अदब की गोपनीय महफ़िलों में शिरक़त करती थीं जो औरंगजेब के मर्जी के खिलाफ़ था. मुशायरों  और महफ़िलों में शिरक़त करते-करते जेबुन्निसा को शायर अक़ील खां रज़ी से प्रेम हो गया. इस प्रेम की कहानी जेबुन्निसा के पिता मुगल सम्राट् औरंगजेब की कानों तक पहुँच गई. अपनी बेटी को एक मामूली शायर से प्रेम करना इतना खटका कि जेबुन्निसा को जनवरी 1691 में दिल्ली के सलीमगढ़ किले में नजरबंद करवा दिया गया. कई लोगों का अलग राय है कि औरंगजेब के विरुद्ध शाहजादा अकबर के साथ गुप्त पत्र-व्यवहार करने के आरोप में सजा दी गई थी.



औरंगजेब ने दो प्रेमियों को अलग कर दिया पर दिलों को अलग न कर सका. कैदखाने में जेबुन्निसा प्रेम की आंच में तिल-तिल कर जलती रहीं. उनकी ज़िन्दगी के आखिरी बीस साल क़ैद की तन्हाई में ही गुज़रे और क़ैद में ही उनकी मौत हुई. जेबुन्निसा आजीवन अविवाहित रहीं. उनके प्रेम और विरह का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता हैं कि कैद के दौरान जेबुन्निसा ने 5000 से भी ज्यादा ग़ज़लें, शेर और रुबाइयां और कविता संकलन ‘ दीवान-ए-मख्फी’ लिखी.


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जेबुन्निसा की मृत्यु 1702 में हुई. उसे काबुली गेट के बाहर तीस हजारा बाग में दफनाया गया पर जेबुन्निसा की आत्मा आज भी उसी किलें में अपने प्यार को पुकार रही है. जेबुन्निसा की रूह को उसी किलें में अपने अधूरे प्यार को पाने का इंतजार हैं. लोग कहते हैं कि जेबुन्निसा की आत्मा आधी रात को अपने अधूरें प्यार को पुकारती है. लोग आज इस किला को भुतहा कहते है. Next…




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