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वो प्रधानमंत्री जिन्होंने अमेरिकी धमकी के आगे घुटने टेकने से मना कर दिया

वो प्रधानमंत्री बने. एक ऐसे देश के प्रधानमंत्री जिसने आजादी के बाद अपने पड़ोसी देश चीन के साथ युद्ध किया था. एक ऐसे देश के प्रधानमंत्री जो परावलम्बी से स्वावलंबन की ओर बढ़ रहा था. वैसे समय में जब अमेरिका ने संधि के तहत भारत को दिये जाने वाले अन्न की पूर्ति रोक देने की धमकी दी तो उस प्रधानमंत्री ने अपने पैरों पर खड़े रहने के अपने इरादे जाहिर कर दिये. भारतीय प्रधानमंत्री के पद को सुशोभित करने वाले प्रधानमंत्रियों में से कुछ ऐसे हुए हैं जिन्होंने निजी जीवन में सादे जीवन और उच्च विचारों से भारतीय समाज के लिये ऊँचे मानक स्थापित किये हैं. उनमें से एक हैं भारत के तीसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री. माना जाता है कि उनका जीवन बेहद सादा और आम था. लाल बहादुर शास्त्री के बेटे अनिल शास्त्री ने उनके सादे जीवन से कुछ उद्धरण सुनाये जो आज भी समाज में छल-कपट और स्वार्थरहित जीवन जी रहे लोगों के लिये प्रेरणास्रोत है. पेश हैं कुछ चुनिंदा उद्धरण:-



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10रूपये का बचा पेंशन बंद करवाया

आजादी के आंदोलन में भाग लेने के कारण वो जेल में थे. उस समय सर्वेंट्स ऑफ पिपल सोसाइटी के पचास रूपये के पेंशन पर उनके परिवार का गुजारा चलता था. जेल में रहने के दौरान उन्होंने अपनी पत्नी को ख़त लिख कर पूछा कि, “क्या उन्हें पेंशन मिल रही है और वो खर्च चलाने के लिये पर्याप्त है या नहीं?” लाल बहादुर शास्त्री की पत्नी ने ख़त के जवाब में लिखा कि, “उन्हें पेंशन मिल रही है जिसमें से 40 रूपयों में उनका मासिक खर्च चल जाता है और वो 10 रूपये बचा भी लेती हैं.” शास्त्री जी ने तुरंत सर्वेंट्स ऑफ पिपल सोसाइटी को ख़त लिखते हुए उनसे उनके परिवार को मिलने वाली 50 रूपयों की पेंशन को 40 रूपये करने को कहा.


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धमकी के कारण शाम का खाना बंद किया

वर्ष 1965 में पाकिस्तान से युद्ध के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति लिंडन बी जॉनसन ने भारत को युद्ध बंद करने को कहा. ऐसा न करने पर उन्होंने पीएल-480 नामक संधि को तोड़ने की धमकी दी जिसके तहत भारत को गेहूँ की पूर्ति की जा रही थी. उस दिन लाल बहादुर ने घर में अपनी पत्नी को शाम का खाना न बनाने को कहा. पत्नी के पूछने पर उन्होंने बताया कि,“मैं अपने देशवासियों को एक शाम का खाना छोड़ने से पहले यह महसूस करना चाहता हूँ कि अन्न के अभाव में कैसा लगता है.” अगले दिन लाल बहादुर ने ऑल इंडिया रेडियो पर लोगों से एक शाम का अन्न छोड़ने की अपील करते हुए कहा कि, “हम भूखे रह जायेंगे, लेकिन अमेरिका के आगे झुकेंगे नहीं.”



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घंटे भर में मंजूर हुए ऋण पर पूछा सवाल

प्रधानमंत्री बनने के बाद भी लाल बहादुर शास्त्री के पास अपनी कार नहीं थी. परिवारवाले उनसे कार खरीदने की ज़िद करते रहते थे. उन्होंने अपने सचिव से कार की कीमत जानने की इच्छा जाहिर की. उस समय फियेट कार की कीमत 12,000 रूपये थी. उनके बैंक ख़ाते में केवल 7,000 रूपये थे. उन्होंने बैंक से 7,000 रूपये ऋण लेने के लिये आवेदन दिया जो महज डेढ़ घंटे में मंजूर हो गया. शास्त्री जी ने ऋण आवेदन को मंजूर करने वाले बैंक अधिकारी को ख़त लिख कर यह जानने की कोशिश की कि ऋण के लिये आवेदन देने वाले अन्य लोगों को भी इतनी जल्दी ही मंजूरी मिल जाती है! उसके बाद उन्होंने बैंक अधिकारी को यह सलाह दी कि उनके बैंक के ग्राहकों की जरूरतों का समाधान भी उतनी ही तेजी से किया जाये.


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सचमुच, प्रधानमंत्री के पद पर बैठ कर भी सादा जीवन जीने वाले व्यक्ति ही भारतीयों के प्रेरणास्रोत बने रहेंगे.  Next…..


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