‘इस देश में एक ही माफिया है, वो है सरकार.’ फिल्म ‘कोयलांचल’ का ये डॉयलाग फिल्म से ज्यादा याद किया जाता है. फिल्म को और भी दमदार बनाया था विनोद खन्ना की एक्टिंग ने. अपने अभिनय से सबको अपना दीवाना बनाने वाले विनोद कैंसर की बीमारी को हरा नहीं पाए और इस खतरनाक बीमारी से लड़ते-लड़ते आज उन्होंने अंतिम सांस ली.
उनकी जिंदगी की किताब बंद होने के बाद भी ऐसे कई किस्से हैं, जिन्हें बहुत कम लोग जानते हैं. कभी फिल्मों में आने के लिए अपने पिता से जिद्द पर अड़े विनोद ने खुद कॅरियर छोड़कर ओशो आश्रम में रहने का फैसला किया था. आइए, जानते हैं उनकी जिंदगी के ऐसे ही कुछ किस्से.
पिता ने तान दी थी विनोद पर बंदूक
विनोद खन्ना के लिए फिल्मों में काम करना आसान भी नहीं था. उनके पिता बड़े बिजनेसमैन थे और वह चाहते थे कि उनका बेटा भी बिजनेस करे. जब विनोद को फिल्म का ऑफर मिला और उन्होंने घर पर पिता को बताया तब उनके पिता ने उन्हें बहुत डांटा और उन पर बंदूक तानकर कहा कि अगर वह फिल्मों में गए तो उन्हें गोली मार मार देंगे.
विनोद खन्ना की मां ने बाद में उनके पिता को खूब समझाया तब जाकर पिता ने उन्हें दो साल तक फिल्म इंडस्ट्री में काम करने की इजाजत दी और कहा कि अगर दो साल में वह सफल नहीं हुए तो उन्हें वापस आकर घर के बिजनेस में हाथ बंटाना पड़ेगा.
फिल्में छोड़कर 5 साल के लिए चले गए ओशो के आश्रम, धोए बर्तन
80 के दशक में कॅरियर के पीक पर अचानक खन्ना ने फिल्मों से कुछ समय के लिए नाता तोड़ लिया और आध्यात्मिक गुरु ओशो रजनीश को फॉलो करने लगे. 1980 के शुरुआती दौर में वह यूएस में ओशो के समुदाय रजनीशपुरम चले गए. करीब 5 साल उन्होंने वहां ओशो के यहां बर्तन मांजे और माली का काम किया. माना जाता है कि इस वजह से उनके और उनकी पत्नी के सम्बधों में दरार आ गई.
5 साल बाद एक बार वह फिर फिल्मी दुनिया में वापस लौटे और उसके बाद ‘इंसाफ’ और ‘सत्यमेव जयते’ जैसी हिट फिल्में दी. राजनीति और सामाजिक मुद्दों पर कटाक्ष करती इस फिल्म ‘मेरे अपने’ को विनोद खन्ना की सबसे बेहतरीन फिल्मों में से एक माना जाता है….Next
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