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जहां पहुंचते-पहुंचते 1000 सीसी की बाईक हांफने लगती है, वह रिक्शा चलाकर पहुंच गया

लद्दाख की खुली सड़के,  धूप में चमचमाते बर्फ से घिरे पहाड़ और यहां की वादियों में बसती आलौकिक शांति….ये हर उस यात्री को बुलाती हैं जो प्रकृति को कुछ और करीब से महसूस करना चाहता है, पर जब बात इस दुर्गम क्षेत्र में जाने की आती है तो अच्छे-अच्छों की हिम्मत जवाब दे जाती है. 17,000 फिट से अधिक की उंचाई पर किसी भी साधन से पहुंचना एक मुश्किल चुनौती है, पर 44 साल के सत्येन दास यहां तक उस साधन से पहुंचे जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता.


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कोलकाता निवासी सत्येन दास ने कोलकाता से लद्दाख तक रिक्शा चला कर पहुंचे. इस दौरान उन्होंने 3000 किमी की दूरी रिक्शा चलाकर तय की, इस यात्रा को पूरा करने में उन्हें कुल 68 दिन लगे. 17 अगस्त को वे दुनिया के सबसे उंची सड़कों में से एक खारदुंगला टॉप पे पहुंचे जिसकी उंचाई 17,582 फिट है.


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पेशे से रिक्शा चालक सत्येन, 68 दिन के इस सफर में झारखंड, उत्तर प्रदेश, श्रीनगर से होते हुए लद्दाख पहुंचे. सत्येन दास कहते हैं कि जब वे पठानकोट के आगे पहुंचे तो क्षेत्रीय लोगों ने बताया कि उन्होंने इससे पहले कभी रिक्शा नहीं देखा था. सत्येन का कहना है कि उनके इस यात्रा का मकसद विश्व शांति और पर्यावरण संरक्षण का संदेश देना था.


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लद्दाख से कुछ दिन पहले ही लौटे सत्येन की निगाह अब अपनी इस उपलब्धि को गिनीज बुक में दर्ज कराने पर है. उनका दावा है कि उनसे पहले किसी ने भी 5000 मीटर से अधिक की ऊंचाई पर रिक्शा नहीं चलाया है.


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इससे पहले भी सत्येन ने ऐसी यात्राएं की हैं. 2008 में उन्होंने अपनी पत्नी और बेटी को रिक्शा में बैठाकर रोहतांग दर्रे तक का सफर किया था जो हिमाचल प्रदेश में स्थित है. उनके इस यात्रा की फंडिंग दक्षिण कोलकाता में स्थित एक संस्था, नकताला अग्रणी क्लब ने की. संस्था के सचिव पाथो डे का कहना है कि हम सत्येन के उत्साह और दृढ़ निश्चय से बेहद प्रभावित हुए थे जिसके बाद हमने उसकी यात्रा को फंड करने का फैसला लिया.


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सत्येन की इस यात्रा में तकरीबन 80,000 रूपए लगे. उनकी इस यात्रा को रिकॉर्ड करने के लिए उनके साथ कोलकाता से एक डॉक्यूमेंट्री फिल्ममेकर भी गया था.


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