ताजमहल, लाल किला, राष्ट्रपति भवन और यहां तक की संसद भवन को भी बेचने वाला मिथलेश कुमार श्रीवास्तव उर्फ नटवरलाल के नाम से कौन वाकिफ नहीं है? इस एक नाम ने न केवल नकली चेक और डिमांड ड्राफ्ट देकर कई दुकानदारों से लाखों रुपए ऐंठे बल्कि बड़े-बड़े उद्योगपतियों को चूना भी लगाया जिसमें टाटा, बिरला, अंबानी के नाम शामिल है. ऐसा ही एक और शख्सियत है विक्टर लस्टिग जिसका नाम कभी विश्व के बड़े देशों के प्रमुखों की जुबान पर था.
दुनिया के सबसे बड़े ठग के नाम से मशहूर विक्टर लस्टिग ही वह व्यक्ति था जिसने फ्रांस के मशहूर एफिल टॉवर को ही बेच दिया था. 1890 में अस्ट्रिया-हंगरी में पैदा हुआ विक्टर बेहद ही शातिर और कई भाषाओं का ज्ञाता था. इसी का फायदा उठाते हुए उसने कई विदेशी पर्यटकों को ठगा.
बात 1925 की है जब विक्टर लस्टिग ने एक अखबार में एफिल टावर को मरम्मत करने की खबर को पढ़ा. यह वह दौर था जब प्रथम विश्व युद्ध के बाद फ्रांस खुद को फिर से निखार रहा था. उस दौरान राजधानी पैरिस में ठगो के लिए अच्छा माहौल था. इसी का फायदा उठाकर विक्टर लस्टिग ने एफिल टॉवर को बेचने की योजना बनाई. इसके लिए सबसे पहले उसने नकली सरकारी कागजात बनवाए और खुद सरकारी अधिकारी बनकर 6 बड़े कबाड़ व्यवसायियों से ‘होटल दी क्रिलॉन’ में संपर्क किया. यह होटल पैरिस के सबसे पुराने होटलो में से एक है.
10वीं पास व्यक्ति ने कबाड़ से बना दी बाइक
होटल में मीटिंग के दौरान विक्टर लस्टिग ने खुद को डाक और टेलीग्राफ मंत्रालय का उप महानिदेशक बताया. मीटिंग में विक्टर ने व्यवसायियों को गलत जानकारी दी कि सरकार अब एफिल टॉवर की मरम्मत नहीं करा सकती इसलिए इसे बेचना चाहती है. उसने झूठ बोलकर व्यवसायियों से कहा कि एफिल टॉवर के बेचे जाने से लोग विरोध करेंगे इसलिए मीटिंग की सभी बातों को गोपनीय रखा जाए. उन छह व्यवसायियों में से एक को इस शर्त पर एफिल टावर बेच दिया, कि वो इसे ट्रेन से ऑस्ट्रिया ले जाएगा.
लस्टिग कितना शातिर और जालसाज था इसे इसी बात से समझा जा सकता है कि इसने पहली बार नोट छापने वाली मशीन बेची थी. विक्टर लस्टिग ने एक व्यक्ति को यह कहकर एक मशीन बेची कि ये 100 डॉलर के नोट छापती है. विक्टर ने उस व्यक्ति को ये मशीन 30 हजार डॉलर में बेची पर उस मशीन से 100 डॉलर के सिर्फ दो नोट निकले और उसके बाद सादे कागज. उस दौरान खरीदार को समझ आया कि वो ठगा जा चुका है..Next
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