हिन्दुस्तान के कोने-कोने में गंगा-जमुनी तहजीब की बेहतरीन मिसाल देखी जा सकती है. इसी मिली-जुली तहजीब का एक उदाहरण है कर्नाटक का मत्तूरु गांव. इस गांव की सबसे खास बात यह है कि यहां के सभी मुसलमान भाई संस्कृत में ही बात करते हैं. सचमुच इस गाँव ने पुरे हिन्दुस्तान को सद्भावना का बेमिसाल संदेश दिया है, साथ ही यह भरम भी टूट गया है कि भाषा किसी विशेष समुदाय की पहचान होती है.
किसी से यह बात छिपी नहीं है कि आज संस्कृत भाषा की क्या स्थिति है? ऐसे में यदि कहीं से यह समाचार सुनने को मिलें कि एक ऐसा गांव है जहाँ का बच्चा-बच्चा संस्कृत में बात करता है तो हैरानी होना लाजमी है. कर्नाटक का यह मत्तूरु गांव अपनी इस अनोखी पहचान के लिए जाना जाता है. इस गांव में क्या हिंदू, क्या मुसलमान सभी की एक ही बोली और भाषा है. आश्चर्य इस बात का है कि मत्तूरु गांव के आसपास के गांवों में लोग कन्नड़ भाषा बोलते हैं, लेकिन यहां केवल संस्कृत में ही वार्तालाप की जाती है.
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तुंग नदी के तट पर बसा यह गांव बेंगलुरु से 300 किलोमीटर की दूरी पर है. ऐसा नहीं है कि इस गांव में संस्कृत बोलने का प्रचलन नया-नया है, बल्कि यहां प्राचीन काल से ही संस्कृत बोली जाती है. हालांकि, बाद में 1981-82 तक यहां के लोग कन्नड़ बोलने लगे थे, लेकिन अब पूरी तरह संस्कृत बोली जाती है.
सबसे पहले पेजावर मठ के स्वामी ने इस गांव को संस्कृत भाषी बनाने का निर्णय किया था. कहा जाता है कि उस समय सभी गांव वालों को 10 दिनों तक 2 घंटे संस्कृत बोलने का अभ्यास कराया जाता था. इसके बाद से सारे लोग आपस में संस्कृत में बातें करने लगे. मत्तूरु गांव में 500 से ज्यादा परिवार रहते हैं, जिनकी संख्या तकरीबन 3500 के आसपास है.
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अब इस गांव में संस्कृत भाषा की लोकप्रियता इतनी है कि यहां के ज्यादातर बच्चें स्कूल में प्रथम भाषा के रूप में संस्कृत को ही चयन करते हैं. इतना ही नहीं, विदेशों से भी कई लोग संस्कृत सीखने के लिए इस गांव में आते हैं.Next…
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