Menu
blogid : 7629 postid : 786628

हर कोई अशुद्ध होता है इस संस्कार से पहले…जानिए हिंदुओ के सबसे रहस्यमयी परंपरा का सच

जन्म से लेकर मृत्यु तक हिंदु संस्कृति में मुंडन संस्कार कई बार निभाया जाता है. आखिर क्या वजह है कि भारतीय परंपरा में मुंडन संस्कार को इतना महत्व दिया जाता है. हिंदु धर्म में मुंडन करने की एक विशेष पद्धति है. इसमें मुंडन के बाद चोटी या चुंडी रखना आवश्यक है. चोटी रखने की परंपरा पुरूषों के साथ-साथ स्त्रियों में भी है. सच तो ये है कि न सिर्फ हिंदु बल्कि हर धर्म की स्त्रियां चोटी रखती हैं. अक्सर लोग चोटी रखने की परंपरा को फैशन से जोड़कर देखते हैं पर असल में मुंडन और चोटी रखने की परंपरा अन्य प्रचीन भारतीय परंपराओं के भांति ही अति वैज्ञानिक है.



mundan


पहला मुंडन


जन्म के बाद बच्चे का मुंडन किया जाता है. इसके पीछे मुख्य कारण यह है कि जब बच्चा मां के गर्भ में होता है तो उसके सिर के बालों में बहुत से हानिकारक कीटाणु, बैक्टीरिया और जीवाणु लगे होते हैं जो धोने से नहीं निकल पाते इसलिए बच्चे का जन्म के 1 साल के भीतर एक बार मुंडन जरूरी होता है.

बच्चे की उम्र के पहले वर्ष के अंत में या तीसरे, पांचवें या सातवें वर्ष के पूर्ण होने पर उसके बाल उतारे जाते हैं और यज्ञ किया जाता है जिसे मुंडन संस्कार या चूड़ाकर्म संस्कार कहा जाता है. इससे बच्चे का सिर मजबूत होता है तथा बुद्धि तेज होती है. सामान्यतः उपनयन संस्कार बच्चे के 6 से 8 वर्ष की आयु के बीच में किया जाता है.


Read: 11 साल के बच्चे ने आइंस्टीन और हॉकिंस को आईक्यू के मामले में पछाड़ दिया… पढ़िए कुदरत का एक और चमत्कार


यज्ञोपवीत संस्कार


वैदिक काल में 7 वर्ष की आयु में शिक्षा ग्रहण करने के लिए भेजा जाता था. गुरूकुल में जाने से पहले बच्चे का जनेउ संस्कार या यज्ञोपवीत कराया जाता था. इसमें यज्ञ करके बच्चे को एक पवित्र धागा पहनाया जाता है.



mundan 2



इस संस्कार के बाद ही बच्चा द्विज कहलाता है. ‘द्विज’ का अर्थ होता है जिसका दूसरा जन्म हुआ हो. अब बच्चे को पढ़ाई करने के लिए गुरुकुल भेजा जा सकता है. पहले इस संस्कार के दौरान ही बच्चों का वर्ण तय किया जाता था. इसके बाद यह निर्णय लिया जाता था कि बच्चे को ब्राह्मणत्व ग्रहण करना है अथवा क्षत्रियत्व या वैश्यत्व. इससे पहले सबको शुद्र ही माना जाता था. हर वर्ण के लिए खास तरह की शिक्षा की व्यवस्था थी.


Read: क्या है इस रंग बदलते शिवलिंग का राज जो भक्तों की हर मनोकामना पूरी करता है?


दाह संस्कार


मृत्यु के बाद पार्थिव शरीर के दाह संस्कार के बाद मुंडन करवाया जाता है. इसके पीछे कारण यह है कि जब पार्थिव देह को जलाया जाता है तो उसमें से भी कुछ हानीकारक जीवाणु हमारे शरीर पर चिपक जाते हैं. नदी में स्नान और धूप में बैठने का भी इसीलिए महत्व है. सिर में चिपके इन जीवाणुओं को पूरी तरह निकालने के लिए ही मुंडन कराया जाता है.


मुंडन करने के दौरान चोटी छोड़ने का भी वैज्ञानिक महत्व है. सिर में सहस्रार के स्थान पर चोटी रखी जाती है अर्थात सिर के सभी बालों को काटकर बीचो-बीच के स्थान के बाल को छोड़ दिया जाता है. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार सहस्रार चक्र का आकार गाय के खुर के समान होता है इसीलिए चोटी का आकार भी गाय के खुर के बराबर ही रखा जाता है.


इस स्थान पर शिखा यानी की चोटी रखने की परंपरा है, वहां पर सिर के बीचो-बीच सुषुम्ना नाड़ी का स्थान होता है. भौतिक विज्ञान के अनुसार यह मस्तिष्क का केंद्र है. विज्ञान के अनुसार यह शरीर के अंगों, बुद्धि और मन को नियंत्रित करने का स्थान भी है. जिस स्थान पर चोटी रखते हैं वहां से मस्तिष्क का संतुलन बना रहता है. शिखा रखने से सहस्रार चक्र को जागृत करने और शरीर, बुद्धि व मन पर नियंत्रण करने में सहायता मिलती है. इससे पता चलता है कि हमारे ऋषियों ने बहुत सोचसमझकर चोटी रखने की प्रथा को शुरू किया था.


Read more: जानिए भगवान गणेश के प्रतीक चिन्हों का पौराणिक रहस्य

पत्नी की इच्छा पूरी करने के लिए श्री कृष्ण ने किया इन्द्र के साथ युद्ध जिसका गवाह बना एक पौराणिक वृक्ष….

स्त्रियों से दूर रहने वाले हनुमान को इस मंदिर में स्त्री रूप में पूजा जाता है, जानिए कहां है यह मंदिर और क्या है इसका रहस्य

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh