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अजगर के रूप में जन्में इंद्र को पाण्डवों ने किया था श्राप मुक्त, पढ़िए एक अध्यात्मिक सच्चाई

स्वर्ग लोक के देवता इन्द्र की सत्ता को जिसने भी ललकारा है उसे हर बार मुंह की खानी पड़ी है. पुराणों में कई ऐसी घटनाओं का जिक्र है जिसमें यह स्पष्ट तौर पर बताया गया है कि स्वर्ग के राजा इन्द्र को उनके पद से हटाने का दुस्साहस करने वाला चाहे कोई असुर हो, इंसान हो या फिर देव, सभी को हार का ही सामना करना पड़ा है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक बार ऐसा भी हुआ था जब स्वयं इन्द्र ने ही अपना पद छोड़ देने का निश्चय कर लिया था और वो भी पश्चाताप के लिए.




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वृत्तासुर नामक एक राक्षस, जिसने तीनों लोक में हाहाकार मचा रखा था, का अंत करने के बाद ब्रह्महत्या का पश्चाताप करने के लिए इन्द्र ने कमल के फूल के तने में रहने का निश्चय किया. इन्द्र लोक छोड़कर कमल की डंडी में उनके वास करने के कारण स्वर्ग का काम बाधित हो रहा था. ना बारिश होती थी, ना हवा चलती थी, पूरी की पूरी प्राकृतिक व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो गई थी. इसलिए देवों ने सोचा कि किसी अन्य व्यक्ति को स्वर्ग का कार्यभार सौंपकर इन्द्र का पद दे दिया जाए. बहुत विचार करने के बाद उन्होंने पृथ्वी के प्रतापी राजा नहुष को इन्द्र की पदवी देने का फैसला किया.




जब तक नहुष पृथ्वी लोक पर था उसकी पहचान एक धर्मात्मा की तौर पर थी. वह परोपकारी, दूसरों के लिए भलाई चाहने वाला, सभी के हितों के लिए काम करने वाला राजा था लेकिन स्वर्ग की शान और ऐशो-आराम देखकर वह बहक गया और स्वर्ग की सभी सुख-सुविधाओं का लुत्फ उठाने लगा. उसकी नीयत दिनोंदिन अनैतिक होने लगी और वह वास्तविक इन्द्र की पत्नी इन्द्राणी को भी अपना बनाने की चाह रखने लगा.




उसने इन्द्राणी को कहा कि अब इन्द्र वो है इसलिए इन्द्राणी का काम उसे प्रसन्न करना है. आत्मसमर्पण करने के लिए कहकर वह इंद्राणी का इंतजार करने लगा. कई दिन बीत गए परंतु इन्द्राणी हर बार नहुष के सामने कोई ना कोई बहाना बना देती.


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इन्द्राणी, देवों के देव बृहस्पति के पास मदद मांगने के लिए गईं. बृहस्पति ने उन्हें कहा कि वह नहुष को कहें कि वह उसके सामने आत्मसमर्पण करने के लिए तैयार हैं लेकिन सिर्फ तभी जब वह जान लेंगी कि उनके पति जिन्दा हैं या नहीं. इतना ही नहीं बृहस्पति ने इन्द्राणी से कहा कि वह विष्णु को प्रसन्न कर उनसे समाधान मांगें.



भगवान विष्णु ने इन्द्राणी की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें अपने पति को ब्रह्म हत्या जैसे पाप से मुक्ति दिलवाने के लिए अश्वमेध यज्ञ करने और देवी की आराधना करने जैसा सुझाव दिया. इन्द्राणी ने ऐसा ही किया और उनकी तपस्या से संतुष्ट होकर देवी ने उन्हें इन्द्र की सभी शक्तियां वापस मिलने, पति से पुन: मिलन और नहुष की सत्ता का अंत जैसा वरदान दे दिया.


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इन्द्राणी ने इन्द्र को ढूंढ़ लिया और नहुष को उसके पापों की सजा देने के लिए एक योजना बनाई. योजनानुसार इन्द्राणी ने नहुष से कहा कि वह उसकी हो जाएंगी पर सिर्फ तभी जब नहुष सप्तऋषियों द्वारा उठाई गई पालकी पर बैठकर उनके पास आएंगे. नहुष ने ऐसा ही किया. सप्तऋषियों की पालकी में बैठकर वो इन्द्राणी से मिलने चला परंतु अधीरता में पालकी धीरे-धीरे चलाने की वजह से उसने एक सप्तऋषि को पैर मार दिया. पूर्व में किए गए जिन पुण्यकर्मों ने उसे अब तक बचाकर रखा था वह समाप्त हो गए और महर्षि को लात मारने की वजह से उसके पाप उसके पुण्य पर भारी पड़ गए.



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वह पालकी से गिर गया और सीधे भू-लोक में जा गिरा, सप्तऋषि से मिले श्राप की वजह से वह अजगर बनकर जीने लगा और उसका उद्धार तब हुआ जब हजारों वर्षों बाद पांडवों ने उसे इस श्राप से मुक्त करवाया.


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