हनुमान, बजरंगबली, मारूति, इन सभी नामों से विख्यात भगवान हनुमान सुमेरू पर्वत के राजा केसरी व माता अंजना के पुत्र थे. अत्यंत बलवानी भगवान हनुमान को विद्वानों द्वारा वानर जाति से संबंधित बताया गया है, जिनके मुख व शरीर का आकार भी वानरों की ही भांति है.
भगवान हनुमान पर पवन के देवता का भी आशीर्वाद था, स्वंय पवन देवता ने उनके पालन-पोषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी जिसके उपरांत बजरंगबली को पवनपुत्र भी कहा जाने लगा.
महान शक्तियों के बल पर पवनपुत्र हनुमान ने अपने जीवनकाल में अनेक प्रभावशाली कार्य किए जिनमें से रामायण काल में उनकी भूमिका समस्त संसार में लोकप्रिय है. वानरों की सेना की अगुवाई करते हुए जिस प्रकार पवनपुत्र हनुमान ने लंका के राजा और असुर सम्राट रावण की कैद से भगवान राम की पत्नी, माता सीता को मुक्त कराया था उसे सारा जगत जानता है लेकिन सीता माता से ही हनुमान जी के जीवन का एक और बड़ा सच जुड़ा है ये शायद ही कोई जानता होगा.
माता सीता को ज्ञात हुआ था यह सच
वानर के रूप में बजरंगबली महत्वपूर्ण अवतार लेकर धरती पर आए थे जिसका आभास माता सीता को पहले ही हो गया था. अयोध्या के राजा राम के परम भक्त हनुमान को शिव के 11वें अवतार के रूप मे जाना जाता है, इतना ही नहीं भगवान शिव के ही आशीर्वाद से हनुमान जी को सभी शक्तिया प्राप्त हुई थी.
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इस तरह पहचाना माता सीता ने शिव के अवतार को
यह तब की बात है जब माता सीता हनुमान जी के लिए भोजन बना रही थीं. माता सीता द्वारा बनाया गया भोजन हनुमान जी को इतना पसंद आया कि वे खुद को रोक ना सके और खाते चले गए. वे जितना खाते उनकी भूख और भी बढ़ती जाती.
हनुमान जी के रुद्रावतार से अपरिचित माता सीता उनकी इस दशा को समझ ना पाईं और कुछ समय पश्चात इसका उपाय खोजने लगीं. तभी माता सीता ने हनुमान जी की पीठ पर ‘ओम नमः शिवाय’ लिख दिया, ऐसा करते ही हनुमान जी को अपना वास्तविक स्वरूप ज्ञात हुआ और वह रुक गए. हनुमान जी में आए इस बदलाव को देखते ही माता सीता समझ गईं कि यह कोई आम वानर नहीं है बल्कि वानर के वेष में शिव जी के अवतार हैं.
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