सोचिए, आपका दोस्त आपको अपने सही नाम से नहीं पुकारता. आपने उसे लाख बार समझाया लेकिन वो मानता ही नहीं. ऐसे में आपको बहुत गुस्सा आता है और आप बार-बार उससे कहते फिरते हैं कि ‘मेरे मम्मी-पापा ने बहुत प्यार से मेरा नाम रखा है, नाम से क्यों नहीं बुलाता’
लेकिन कल्पना कीजिए, अगर आपका नाम नहीं रखा हो, तो कोई आपको कैसे बुलाएगा?. आपकी कल्पना से परे भारत में एक गांव ऐसा है जहां पर किसी व्यक्ति का नाम नहीं रखा जाता. अब आप सोच रहे होंगे कि तो एक-दूसरे को बुलाने के लिए लोग क्या करते हैं?
किसी का नाम नहीं, सीटी बजाकर बुलाते हैं लोग
दरअसल, मेघालय का एक खासी गांव है ‘कॉन्गथॉन्ग’. पूरी दुनिया से लगभग अलग-थलग पड़े इस गांव में लोग एक-दूसरे को नाम लेकर नहीं बुलाते हैं. यहां किसी को बुलाने के लिए सीटी बजाकर बुलाया जाता है. यहां के लोग इसे सुर कहते हैं.
इस गांव में जब कोई बच्चा पैदा होता है, तो उसके नाम की जगह उसके लिए सीटी की एक नई धुन बनाई जाती है. बच्चे को किस सीटी से बुलाया जाएगा, ये बच्चे की मां तय करती है. हर सीटी एक मिनट से कुछ कम समय की होती है. और पंछियों की आवाज़ों से मिलती-जुलती होती हैं.
मरने के बाद नहीं होता उसकी बनी धुन का इस्तेमाल
सबसे दिलचस्प बात ये है कि किसी के मरने के बाद उसकी वाली सीटी का इस्तेमाल बंद हो जाता है. हमें लगता है कि नाम की जगह सीटी बजाना एक मुश्किल तरीका है, पर ये गांव जिस जगह पर है वहां की पहाड़ियों में आदमी की आवाज दूर तक सुनाई नहीं देती, जबकि चिड़ियों का चहचहाना अपनी हाई पिच के कारण दूर तक सुनाई देता है.
इस वजह से पुराने समय में लोगों ने एक-दूसरे को पुकारने की जगह सीटी बजाना शुरू किया होगा. आज ये लोग इस चीज के इतने आदी हो चुके हैं कि इन्हें यही आसान लगता है.
हां, ये बात अलग है कि आपके और हमारे लिए शायद ये काम किसी पर्वत की चोटी पर चढ़ने जितना ही मुश्किल हो…Next
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