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सेल्फी लेने के चक्कर में कुछ ऐसा हो गया जिसकी किसी ने कल्पना नहीं की थी

उसे अपने आप को बेहतर दिखाने का शौक था. वह अपने लुक से अपने दोस्तों और अपने जान पहचान वालों को अचंभित कर देना चाहता था. उसका फेसबुक अकाउंट उसकी किस्म-किस्म की सेल्फी से पटा पड़ा था. लड़कियों को गले लगाने की तस्वीर हो या फिर किसी म्यूजिक बैंड के साथ फोटो, वह अपनी जिंदगी के हर अहम लम्हों को अपने दोस्तों के साथ साझा करता. लेकिन एक दिन उसका यही शौक उसके मौत का कारण बना.




अगर ऊपर के पैराग्राफ से आखिरी लाइन हटा दी जाए तो ये कहानी फेसबुक, ट्विटर आदि सोशल साइट्स पर सक्रिय लाखों यूजर में से किसी की हो सकती है जिन्हें सोशल साइट्स पर अपनी तस्वीरें अपलोड करने का शौक है. पर ये कहानी 21 वर्षीय ऑस्कर ओटीरो एग्युलर की है. मेक्सिको निवासी एग्युलर को पिस्टल के साथ सेल्फी खींचने का शौक चढ़ा. उसने अपने जान पहचान के एक व्यक्ति से पिस्तौल मांगी और अलग-अलग पोज में अपनी सेल्फी खींचने लगा. एक आकर्षक और स्टाइलिश फोटो खींचने की चाहत में एक ऐसा हादसा हो गया जिसमें उसकी जान चली गई. दरअसल पिस्तौल गोलियों से भरी थी और वह गलती से चल गई.


पेशे से वेटनरी डॉक्टर एग्युलर के पड़ोसी मेनफ्रेडो पेज ने बताया, “मैंने गोली चलने की आवाज सुनी. फिर किसी के चीखने की आवाज आई. मुझे एहसास हो गया कि शायद किसी को गोली लगी है. मैंने तुरंत इसकी जानकारी पुलिस को दी. जब पुलिस वहां पहुंची तो एग्युलर जिंदा था.”


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हालांकि ऑटोप्सी रिपोर्ट में बताया गया की उसकी मौके पर ही मौत हो गई थी. पुलिस ने इस दुर्घटना के वक्त एग्युलर के अपार्टमेंट में मौजूद लोगों से पूछताछ की. उन्होंने बताया कि एग्युलर गोलियों से भरी पिस्तौल से साथ बेपरवाह खेल रहा था और अचानक गोली चल गई.


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एग्युलर नाम के इस युवक की मौत ने सेल्फी कल्चर पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं. मनोवैज्ञानिक पहले ही सेल्फी के बढ़ते चलन और समाज पर उसके प्रभाव का अध्ययन कर रहे हैं. सेल्फी के क्रेज को इस बात से भी समझा जा सकता है कि यह शब्द 2013 में ऑक्सफोर्ड ऑफ दी इयर बना था. ऑक्सफोर्ड संपादक के अनुसार एक आकलन के मुताबिक अंग्रेजी भाषा का यह शब्द 2012 की तुलना में 2013 में 17,000 फीसदी ज्यादा बार इस्तेमाल किया गया.





मनोवैज्ञानिक सेल्फी के प्रति अत्यधिक दीवानगी को सेल्फी सिंड्रोम या नार्सिसिज्म बता रहे हैं. नार्सिसिज्म एक व्यक्तित्व से जुडा मनोरोग है जिसमें व्यक्ति का खुद के प्रति लगाव इतना बढ़ जाता है कि उसे दूसरों की परवाह नहीं रहती. ऐसे मनोरोग से ग्रस्त व्यक्ति अपने रंग-रूप, शरीर और आदतों की बढ़ा-चढ़ाकर खुद तारीफ करते हैं और अपनी कमजोरियों को छिपाते हैं.


हर नई तकनीक का इजाद आदमी की जिन्दगी को सरल और सुगम बनाने के लिए होता है पर जब तकनीक आदमी की जिन्दगी को नियंत्रित करने लगती है तब कई तरह की जटिलताएं और परेशानियां खड़ी हो जाती हैं. सोशल मीडिया और गैजेट के बढ़ते चलन ने आदमी की जिन्दगी को नियंत्रित करना शुरू कर दिया है.


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