कोई कितना भी प्यारा क्यों न हो लेकिन मौत के बाद हम उसे अपने सामने पाकर खुश होने की बजाय डर जाते हैं. लेकिन इनके साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ. इन्होंने न तो अपने चहेते की मौत के सच को स्वीकारा और न ही उसकी मौत के बाद भी उसके साथ रहने से ये डरे. बल्कि उस चहेते के मरने के बाद भी ये जिंदा इंसान उसके साथ रहते रहे.
मौत जिंदगी का अकूट सत्य है लेकिन कोई बहुत प्यारा जब जिंदगी के बंधन तोड़कर मौत की दुनिया में हमेशा के लिए गुम हो जाता है तो न चाहकर भी उसकी मौत को स्वीकार करना इंसान की मजबूरी बन जाती है. लेकिन अगर कोई इस सच को स्वीकार न करे तो….
अक्टूबर 2013 में 56 वर्षीय उमा देवी से जब पुलिस मिली तो हैरान रह गई क्योंकि लगभग एक साल पहले मर चुके इंसान से मिलने की उम्मीद कोई नहीं कर सकता. इसलिए दिसंबर, 2012 में ही मर चुकी उमा देवी से अक्टूबर, 2013 में इस हालत में मिलना पुलिस ही नहीं किसी के लिए भी हैरानी की बात होगी. अब आप सोच रहे होंगे कि शायद उमा देवी की मौत की खबर झूठी होगी लेकिन सच यह है कि यह खबर झूठी नहीं थी. उमादेवी मर चुकी थी लेकिन मौत के भी वह परिवार के साथ रह रही थी. परिवार वालों को उसकी मौत के बाद भी उसके साथ रहने से कोई गुरेज नहीं था लेकिन जाहिर है हम मौत और जिंदगी के बीच के फासले को मिटाकर नहीं रह सकते. जिंदगी और मौत को बांटना एक सच भी है और मजबूरी भी. यहां भी ऐसा ही हुआ.
बात नागरकोइल (Nagercoil) की है. तमिलनाडु का यह छोटासा शहर आज चर्चा का विषय बना हुआ है जिसका कारण यह परिवार है. इस परिवार के इतिहास के बारे में ज्यादा कुछ पता तो नहीं है लेकिन पिछले एक साल से यह परिवार अपने पास-पड़ोस से कटकर रह रहा था. दिसंबर, 2012 में उमा देवी की मौत के बाद ये लोग हमेशा अपना घर बंद कर ही रखते थे. किसी से बात भी नहीं करते थे, न किसी को घर के अंदर आने देते थे. हाल ही में पड़ोसियों को इनके घर से अजीब सी बदबू आने लगी तो उन्होंने पुलिस को बताया. पुलिस जब उमा देवी के घर आई तो हैरान रह गई.
उमादेवी के घर पर केवल तीन लोग थे उमा देवी की मां, एक बच्चा और एक भाई. चौंकाने वाली बात यह थी कि 2012 में उमादेवी की मौत के बाद भी उनके इन परिवार वालों ने उसका अंतिम संस्कार नहीं किया था और उसकी लाश को अपने साथ एक कमरे में बंद कर रखा था. पिछले 10-11 महीनों से पड़ी यह लाश पूरी तरह सड़ चुकी थी और आसपास उसकी बदबू भी फैलने लगी थी. तभी किसी अनहोनी की आशंका के डर से पड़ोसियों ने पुलिस को सूचना दी.
एक लाश के साथ इतने महीनों से रहने के बारे में इनके परिवार वालों का तर्क भी बहुत अजीब है. इनका कहना है कि इनके घर भूतों का बसेरा है. भूत देखकर पहले ही इनके परिवार के दो सदस्यों की मौत हो चुकी है और उमादेवी की मौत का कारण भी ये भूत को ही मानते हैं और परिवार के अनुसार उमा देवी की लाश को घर में रखकर वह अपने घर को उन भूत-प्रेतों से बचा सकते हैं. इनका कहना था कि किसी ने उनसे कहा है कि अगर कोई लाश घर पर रखी जाए तो ये भूत उन्हें नुकसान नहीं पहुंचाएंगे. इसलिए उमादेवी की मौत के बाद उन्होंने उसका अंतिम संस्कार नहीं किया और अपने साथ घर पर ही रखा. इन कहानियों के पीछे इनकी मानसिक अवस्था का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है.
दरअसल इस परिवार की कमाई का एकमात्र जरिया उमादेवी के पिता की पेंशन थी जिसे रिन्यू नहीं करवाने के कारण इनके पास रहने-खाने के पैसे भी नहीं थे. ऐसा माना जा रहा है कि पैसे के अभाव में ही ये उमादेवी का अंतिम-संस्कार भी नहीं कर सके और उनकी मानसिक हालत खराब हो गई. फिलहाल पुलिस ने परिवार के तीनों सदस्यों को मानसिक रोगी बताकर अस्पताल भेज दिया है.
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