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सावधान ! फेसबुक प्रयोग करने पर चुकाना पड़ सकता है कर

तेजी से बदलती तकनीक के कारण सोशल नेटवर्किंग साइट के मामले में फेसबुक को दूसरी साइटों से गलाकाट प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ रहा है. लेकिन अब भी फेसबुक प्रयोग करने वाले लोगों की संख्या कम नहीं हुई है. भारत जैसे देश में जहाँ अभी हर व्यक्ति तक इंटरनेट की पहुँच संभव नहीं हुई है वहाँ पर इसके प्रसार की संभावनाएँ प्रबल है.


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फेसबुक के कुछ फायदे हैं. यह बिछड़े लोगों को मिला सकता है और इस पर तस्वीरें डालकर लोग अपने हर पल को दुनिया भर के लोगों से साझा कर सकते हैं. इसके अलावा भी लोग इस पर तरह-तरह की चीज़ें कर सकते हैं.


लेकिन फेसबुक के बड़े लेकिन मीठे-घाटे भी है. फेसबुक प्रयोग करने के शुरूआती दिनों में अधिकाँश लोगों को इससे एक आसक्ति-सी हो जाती है. कई लोग यह मानते हैं कि उन पर फेसबुक का एक नशा छा गया था जो कई दिनों तक रहा. कई-कई घंटों तक यूँ ही लोग फेसबुक पर पाए जाते थे. इससे उनका काफी समय केवल अपनी तस्वीरें डालने, दूसरों की तस्वीरें और पोस्ट को पसंद करने और उन पर अपने विचार व्यक्त कर अपने आप को भी बड़ा मानने में बर्बाद हुआ.


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इसके अलावा फेसबुक ने लोगों को वास्तविक दुनिया से काट कर, आभासों की एक काल्पनिक दुनिया का निर्माण किया है. साथ ही सबको अपनी बात कहने की शक्ति देकर फेसबुक ने एक ऐसी दुनिया को भी जन्म दिया है जहाँ कोई कुछ भी लिखने को स्वतंत्र है, चाहे वो तर्कों पर आधारित हो या कुतर्कों पर. कई बातें तो सही होती है, लेकिन उससे ज्यादा बातें ऐसी होती है जो कुर्तकों और अफ़वाहों की एक शक्तिशाली साम्राज्य खड़ी कर लोगों को गुमराह करती है.

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फेसबुक की सबसे बड़ी ख़ामी यह है कि इससे मानवीय रिश्तों का क्षरण हुआ है. यह ना ही कोई उत्पादन करता है, ना ही कोई निर्माण. यह केवल लोगों के कीमती समय को नष्ट कर धन बनाने का जरिया बना हुआ है. ये सभी मानवता के लिए घाटे के समान है. प्रयोगकर्ता को फेसबुक जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट धीरे-धीरे अपने गिरफ्त में लेती है इसलिए इसे मीठा-घाटा कहा जा सकता है.


चूँकि फेसबुक लोगों को फालतू बातों में उलझा धन बनाने का नायाब जरिया है इसलिए इस पर कर लगाया जाना चाहिए….उस कर को ‘समय-कर’ नाम दिया जा सकता है. अब कुछ कह उठेंगे कि यह मूल अधिकार का हनन है और लोगों की स्वतंत्रता का हनन है तो इसके लिए यह व्यवस्था की जा सकती है कि इसकी प्रकृति वैकल्पिक कर दी जाय. वैकल्पिक का मतलब यह कि जो इसका प्रयोग करेंगे केवल उसी पर यह कर लागू होगा. इसके साथ ही फेसबुक प्रयोग करने की अवधि के अनुसार कर वसूला जाय, जैसे लंबी अवधि तक फेसबुक पर चिपके रहने वाले लोगों से अधिक कर वसूला जाय. इतना ही नहीं फेसबुक पर किसी चीज़ को पसंद करने या किसी बात पर टिप्पणी करने अथवा चैट करने की दरें भी निर्धारित की जाय.


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इसके बड़े व्यापक और फलदायी परिणाम होंगे. बेवज़ह, फिज़ूल और मिनटों में स्टेट्स बदलने वाले लोगों पर नकेल कसी जा सकेगी. विद्यार्थी फेसबुक से ध्यान हटाएँगे, कर्मचारी काम में मन लगाएँगे, बात करने के लिए लोग फोन का इस्तेमाल करना पसंद करेंगे, बच्चे कंप्यूटर और फोन से चिपकने के बजाय खेल के मैदानों में अधिक समय बिताएँगे, नेत्र चिकित्सक के यहाँ भीड़ कम हो जाएगी और इसका सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि लोग वास्तविक दुनिया में वापस लौट सकेंगे.


चूँकि फेसबुक ने लोगों को एलैक्ट्रॉनिक वस्तु में बदलने में महत्तवपूर्ण भूमिका निभाई है इसलिए कर वसूलने की शुरूआत फेसबुक उपभोक्ताओं से ही की जानी चाहिए. फिज़ूल में लोगों का समय बर्बाद होने से बचाने के लिए सोशल मीडिया पर ‘समय-कर’ जरूर लादा जाना चाहिए……क्योंकि हर एक कर जरूरी होता है. Next…


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