मध्य ताइवान के इस गांव में पहुंचने वाले लोगों को हुआंग यंग-फु रंग से सने हाथों से स्वागत करते हैं. उनके जूते भी रंगों से सने रहते हैं. 93 साल के इस पूर्व सेना की कलाकारी ने एक गांव को बिल्डरों के बुलडोजर के नीचे कुचले जाने से बचा रखा है. पूरे गांव को रंग-बिरंगी आकृतियों से सजा देने वाले हुआंग यंग-फु ‘सतरंगी दादा’ के नाम से मशहूर हो गए हैं
हर सुबह तीन बजे उठकर हुआंग यंग गांव के दीवारों पर पेंटिंग बनाने में जुट जाते हैं. उन्होंने गांव की हर दीवार को रंग-बिरंगे चिड़िया, जानवर, मशहूर हस्तियों और गायकों की तस्वीरों से सजा दिया है. हुआंग यंग रोज लगभग 4 घंटे पेंटिंग करते हैं. लंबे समय तक पेंटिंग करने के लिए घुटने के बल बैठे रहने के कारण उनके घुटने पर कई घाव हो गया है लेकिन हुआंग इसकी परवाह नहीं करते. वे गांव की सड़के और दीवारों को अपनी कला से सजाते रहने के लिए कृत संकल्प हैं.
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हुआंग बताते हैं कि, “पांच साल पहले सरकार द्वार एक पत्र भेजा गया था जिसमें कहा गया था कि सरकार इस गांव को ध्वस्त कर कुछ और बनाना चाहती है. सरकार का कहना था कि हम कुछ पैसे ले लें या कहीं और बस जाएं. लेकिन मैं कहीं और नहीं जाना चाहता था. यह एक मात्र आशियाना है जिसे मैं पूरे ताइवान में अपना असली घर समझता हूं.”
यह बसावट ताइचुंग शहर के नानतुन जिले में स्थित है जहां पूर्व सैनिकों के 1,200 घर हैं जहां वे अपने परिवार के साथ रहते हैं. सरकार के फरमान के बाद लोग अपना घर छोड़कर गांव से बाहर जाने लगे. एक समय इस गांव में सिर्फ 11 घर बचे. तब हुआंग ने निश्चय किया कि वे कुछ करेंगे. वे उस गांव को ऐसे ही नहीं छोड़ देना चाहते थे जहां वे 37 सालों से रहते आ रहे थे.
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हुआंग बताते हैं कि जब वे पांच साल के थे तो उनके पिता ने उनको पेंटिंग सिखाई थी लेकिन तबसे उन्होंने पेंटिग नहीं अजमाया था. सबसे पहले उन्होंने अपने घर के अंदर एक चिड़िया की तस्वीर बनाई. उन्होंने अपने दो कमरों के मकान के अंदरुनी दीवारों को पेंटिंग से सजाया फिर बाहर की दीवारों को. उसके बाद पड़ोस के खाली पड़े घरों को अपनी पेंटिग से सजाया.
जब क्षेत्रीय विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों ने हुआंग के काम को देखा तो उन्होंने इस गांव को बचाने की मुहीम छेड़ दी. विद्यार्थियों के अभियान का असर हुआ और प्रशासन इस गांव को संरक्षित करने के लिए राजी हो गई.
आज यह गांव पर्यटकों का एक बड़ा आकर्षण केंद्र बन चुका है. हर साल इस गांव को देखने करीब 10 लाख लोग पहुंचते हैं. हुआंग बताते हैं कि, “सरकार ने वादा किया है कि वे इस गांव को हाथ नहीं लगाएंगे.” इस गांव को अब सतरंगी गांव के नाम से जाना जाने लगा है और अधिकारी अब इस गांव को एक सांस्कृतिक क्षेत्र के रूप में संरक्षित करना चाह रहे हैं. Next…
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