क्या आप ने कभी भी ऐसी जेल के बारे में सुना है जहां कब्र बनाई जाती हो? इंदिरा गांधी के समय में ऐसी ही एक अजीब सी घटना हुई थी. यह घटना तब हुई जब 1974 में सुल्तानपुर लोधी के विधायक साधु सिंह थिंद ने इंदिरा गांधी से कहा कि वे ब्रिटिश सरकार से अनुरोध करें कि वह शहीद ऊधम सिंह के अंतिम अवशेष को भारत को सौंप दे. फिर क्या था जब ऊधम सिंह के अवशेष को लेने के लिए गए तो अचानक ही एक महान शहीद की कब्र देखने को मिली जिनके बारे में कोई खास नहीं जानता था.
एक समय ऐसा भी आया था जब ब्रिटेन में किसी को भी मृत्यु की सजा देना बंद कर दिया गया था. मृत्यु की सजा ना देने का कारण यह था कि कैदियों की संख्या इतनी बढ़ गई थी कि यदि उन्हें फांसी की सजा दी जाती तो फिर उनके अवशेष का क्या किया जाता इसका कोई हल नहीं था. ज्यादा से ज्यादा कैदियों को रखने के लिए वहां नए और मॉडर्न जेल बनाने की कवायद शुरू हुई. इस कड़ी में 1842 में मॉ़डर्न जेल बना जिसका नाम पेंटोनविले प्रिजन था. इसी जेल में ऊधम सिंह और उस महान शहीद को फांसी दी गई थी.
पेंटोनविले प्रिजन जेल को बनाने का काम अप्रैल 1840 में शुरू हुआ और 1842 में यह बनकर तैयार हुआ. इस जेल की खास बात यह थी कि इस जेल में 520 कैदियों को रखने के लिए सेल बनाए गए थे और साथ ही पेंटोनविले जेल में बहुत ही छोटी-छोटी खिड़कियां थीं. पेंटोनविले जेल में कुछ खास नियम थे जैसे कि एक कैदी किसी भी और कैदी से बात नहीं कर सकता था.
रोज जेलर के साथ मीटिंग्स में भी कैदियों के बैठने के लिए क्यूबिकल्स बने थे. इसमें बैठने के बाद कोई कैदी एक-दूसरे को देख नहीं सकता था. सिर्फ जेलर उन सबको देख सकता था. कैदियों को सुबह के छह बजे से रात के सात बजे तक काम करना पड़ता था. मृत्युदंड देने का काम पेंटोनविले जेल में होने लगा. इसी जेल में आयरलैंड के क्रांतिकारी रोजर कैसमेंट को 1916 में फांसी दी गई थी.
शहीद ऊधम सिंह को पेंटोनविले जेल में ही फांसी दी गई थी. ऊधम सिंह को माइकल ओ डायर को मारने के लिए फांसी की सजा दी गई थी. माइकल ओ डायर जालियांवाला बाग हत्याकांड करने के लिए दोषी था. लेकिन उनसे भी पहले एक और भारतीय क्रांतिकारी को इसी जेल में फांसी दी गई थी, जिनके बारे में बाद में पता चला. यह शहीद थे मदन लाल ढींगरा जिनको कर्जन वाईली की हत्या करने के आरोप में ब्रिटिश सरकार ने इसी जेल में 1909 में फांसी दी थी. उसके बाद उनके पार्थिव शरीर को ना तो उनको परिवार को सौंपा गया और न ही उनके साथी विनायक दामोदर सावरकर को.
मदन लाल का हिंदू रीतियों से अंतिम संस्कार न कर अंग्रेजों ने कॉफिन में बंद कर दफना दिया था. किसी को यह पता नहीं था कि पेंटोनविले जेल में मदन लाल की कब्र है. जब अधिकारी शहीद ऊधम सिंह के अंतिम अवशेष लेने के लिए जेल पहुंचे तो उन्हें इस महान शहीद की कब्र के बारे में भी पता चला. 1976 में मदन लाल के अंतिम अवशेष को भारत लाया गया. इस महान शहीद को 67 साल बाद अपने मादरे-वतन की मिट्टी नसीब हुई. सच ही है कि देश के लिए शहीद होने वाले व्यक्ति हमेशा के लिए अमर हो जाते हैं और ऐसे शहीदों को कभी भी भूला नहीं जाता है.
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कुछ तो था जो उस घर को कोई नहीं खरीदता था….और जिसने खरीदा उसके साथ जो हुआ वो हैरान करने वाला था…
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