कैसे ‘इंसानी खून’ से देवताओं को रिझाया गया इसको जानने से पहले आपको हमारी एक सलाह माननी होगी. गहरी सांस लीजिए और अपने दिलो-दिमाग में यह सोच बैठा लीजिए कि भगवान को भी इंसानी खून पसंद है. ‘खून’ शब्द को सुनते ही शरीर में कंपकपाहट पैदा होने लगती है और यदि ऐसे में यह जाना जाए कि देवताओं को रिझाने के लिए इंसानी खून चढ़ाया जाता था तो इसे पढ़ने के बाद दिल की धड़कनों का तेज हो जाना लाजिमी है.
उत्तर प्रदेश के गोरखपुर शहर से थोड़ी ही दूरी पर एक मंदिर है जिसका नाम ‘तरकुलहा देवी मंदिर’ है. इस मंदिर में विशेष तरह का प्रसाद तैयार किया जाता है जिस कारण तरकुलहा मंदिर का नाम दुनिया भर में प्रसिद्ध है. आज तक आप किसी भी मंदिर में गए होंगे आपने प्रसाद में कई किस्म की मिठाइयां या अन्य खाद्य पदार्थ प्रसाद के रूप में चढ़ते हुए देखी होंगी या फिर स्वयं आपने ही मंदिर में ऐसी चीजे चढ़ाई होंगी पर तरकुलहा मंदिर में बकरे का मांस प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है. हालांकि दुर्गा मां की मूर्ति तक उस प्रसाद को नहीं लाया जाता है लेकिन मंदिर परिसर में ही बकरों की बलि दी जाती है और हांडियों मे मांस को तैयार किया जाता है. तरकुलहा देवी मंदिर की इस परंपरा को मानने वाले लोग हांडियों में तैयार किए गए मांस को प्रसाद कहते हैं.
तरकुलहा मंदिर के इस प्रकरण को जानने के बाद आपको लग रहा होगा कि हमने इंसानी खून की तो कहीं बात ही नहीं की पर अब हम आपको इस मंदिर का इतिहास बताते हैं.
भारत में अंग्रेजों के राज के समय इस इलाके की रियासत के राजा ‘ठाकुर बाबू बंधू सिंह’ थे और साथ ही वो एक स्वतंत्रता सेनानी भी थे. राजा ठाकुर बाबू बंधू सिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ जंग छेड़ रखी थी इसलिए कोई भी अंग्रेज उनकी रियासत के पास से गुजरता था तो वो उसका धड़ काट डालते थे और उस धड़ को देवी मां की मूर्ति के आगे चढ़ा देते थे. जिस समय की यह बात है, उन दिनों स्वतंत्रता सेनानियों के खून में एक लहर दौड़ती थी जो उनसे यही कहती थी कि भारत की धरती उनकी मां है और कोई भी शख्स उनकी मां के सीने पर अपना पैर रखेगा तो वो उसका धड़ काट देंगे. कुछ इसी तरह का जज्बा राजा ठाकुर बाबू बंधू सिंह के दिल में भी था.
एक दिन स्वतंत्रता सेनानी ठाकुर बाबू बंधू सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें फांसी पर लटकाने का फैसला कर लिया गया. पर जब उन्हें फांसी पर लटकाया गया तो अंग्रेज, ठाकुर बाबू बंधू सिंह को कई बार फांसी देने में असफल रहे. बाद में ठाकुर बाबू बंधू सिंह ने स्वयं ही देवी मां का नाम लेते हुए अपने प्राण त्यागने का निश्चय किया और शहीद हो गए. आज भी वहां उनका स्मारक है. राजा ठाकुर बाबू बंधू सिंह द्वारा अंग्रेजों की बलि देने की पुरानी परंपरा को अब लोग बकरे की बलि के रूप में पूरा कर रहे हैं.
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