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लोगों की सभा होने पर इस गांव में पेड़ों से झड़ने लगते हैं पत्ते

गाँवों में होने वाले विवाह के बारे में सुनकर लोगों को बाँसों से बने मंडप, दूल्हे और उसके सगे-संबंधियों की खातिरदारी में दिलो-जान से जुटे कन्या पक्ष के परिवारजन, स्कूलों में ठहराए गए बाराती आदि याद आते हैं, पर बिहार के मधुबनी जिले का एक गाँव विवाह के मामले में बड़ा ही मशहूर है. बिहार की सांस्कृतिक राजधानी दरभंगा जिले से सटे मधुबनी जिले में एक ऐसा गाँव है जहाँ इंसानों के विवाह का प्रकृति से एक अनोखा रिश्ता है. एक ऐसा रिश्ता जिसके बारे में जानकर आपको अटपटा लगेगा.



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मधुबनी नगर से 06 किलोमीटर दूर उत्तर-पूर्व में एक गाँव है जिसका नाम सौराठ है. आसपास के गाँवों और पूरे मिथिलांचल में यह गाँव अत्यंत प्रसिद्ध है.



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यहाँ एक सभा लगती है जिसका नाम सौराठ सभा गाछी है. गाछी मिथिलांचल में फलों के बगीचे के लिए प्रयोग किया जाने वाला शब्द है. प्रत्येक वर्ष इस सभा में दूर-दराज के क्षेत्रों और जि़लों से हज़ारों की संख्या में मैथिल ब्राह्मण अपने बच्चों के साथ इकट्ठा होते हैं. विवाह के मौसम में आयोजित इस सभा का उद्देश्य मैथिल ब्राह्मण लड़के और लड़कियों की शादी तय करना है.



जन्मपत्र और राशिफल के आधार पर लड़के और लड़कियों की कुंडली मिलायी जाती है. राशिफल मिल जाने पर पंजीकार द्वारा जोड़ों की शादी निश्चित कर दी जाती है.




saurathsabha




जेठ और अषाढ़ में लगने वाली इस सभा की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहाँ आने वाले लोगों की संख्या जब 1,00,000 पार कर जाती है तो वहाँ 22 बीघा जमीन में लगे पेड़ों से अपने-आप ही सारे पत्ते झड़ जाते हैं. सुदूर क्षेत्रों से वहाँ आने वाले लोगों के बीच यह वर्षों से जिज्ञासा का विषय रहा है जिसका आज तक कोई ठोस जवाब नहीं मिल पाया है.


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22 बीघा की यह जमीन वहाँ के प्रतापी राजा दरभंगा जी महाराज के द्वारा दान में दी गई थी. इस सभा की शुरूआत राजा हरिसिंह देव  ने तत्कालीन समाज में विवाह-पूर्व प्रचलित सामाजिक कुरूतियों को खत्म करने के लिए किया था. इसके लिए उन्होंने 14 सभाओं का चयन किया था जिसमें से सौराठ एक है.



वहाँ की युवा पीढ़ी इस सच को अपनी आँखों से ना देख पाने के कारण बड़े-बुजुर्गों की बातों पर चुटकी लेते हुए कहते हैं कि यहाँ मोदी जी की सभा करवानी पड़ेगी, और फिर देखना पड़ेगा कि पेड़ों से पत्ते गिरते हैं की नहीं.



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