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प्रायश्चित कर अपने गुनाहों की माफी मांगने का विचित्र तरीका

अंग्रेजी में एक कहावत है टू एरर इज ह्यूमैन अर्थात गलती इंसान से ही होती है. यह एक ऐसा कथन है जिसका प्रयोग प्राय: हम सभी बिना सोचे-समझे करते हैं. कभी अपनी गलती छिपाने के लिए तो कभी की गई गलती को जायज ठहराने के उद्देश्य से हम मानव फितरत को ही कारण बना देते हैं. ऐसा माना जाता है कि गलती करना मनुष्य की मौलिक और नैसर्गिक पहचान है लेकिन गलती क्या और किस सीमा तक हो इस ओर ध्यान देना कोई भी जरूरी नहीं समझता.


regressionयही वजह है कि कई बार हम ऐसी गलतियां, जिन्हें अगर अपराध या गुनाह कहा जाए तो गलत नहीं होगा, कर बैठते हैं जो किसी भी रूप में क्षमा योग्य नहीं होती लेकिन कभी-कभी सजा तो कभी समाज के डर के कारण हम अपने अपराध को उजागर नहीं करना चाहते. लेकिन हम यह बात भी भली भांति जानते और समझते हैं कि भले ही दुनियां की नजर से हम अपने गुनाह को छिपा लें लेकिन न्याय करने वाली उस परमशक्ति से कभी कुछ नहीं छिपाया जा सकता. यही वजह है कि कुछ लोग ईश्वर से माफी मांगने के उद्देश्य से प्रायश्चित करने का निश्चय करते हैं. वहीं कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो केवल इसीलिए प्रायश्चित की राह पर चल पड़ते हैं क्योंकि उन्हें अपनी गलती का अहसास हो जाता है और खुद से ही घृणा होने लगती है.


यूं तो आपने बहुत से लोगों को देखा होगा जो प्रायश्चित करने के लिए खुद को कष्टकारी परिस्थितियों में रखते हैं, कठोर दंड देते हैं ताकि किसी तरह वह अपने गुनाहों से पीछा छुड़ा सकें.


लेकिन सेविला (स्पेन) में कोई भी गुनाहगार खुद पर यातनाएं नहीं बरसाता, क्योंकि वहां प्रत्येक वर्ष पड़ने वाले होली वीक के दौरान अपने गुनाहों का पश्चाताप करने के लिए श्रद्धालु जुलूस निकालते हैं. इस समारोह को सेमाना सेंटा नाम से जाना जाता है.


सफेद पोशाक पहनकर पिशाच से दिखने वाले लोग एक साथ भीड़ के रूप में चर्च जाते हैं. इसके अलावा पूरे सप्ताह स्पेन के लोग ईश्वर से क्षमा मांगने के लिए अजीबोगरीब पोशाक पहनकर, जिसे नजारेनोस कहा जाता है, जुलूस निकालते हैं.


स्पेन में यह होली वीक ईस्टर से कुछ समय पहले आती है. पूरे सप्ताह पहने जाने वाली इस पोशाक का कोई रंग नहीं होता. इसे इस तरह पहना जाता है जिससे दुनियां से व्यक्ति की पहचान छिपाई जा सके. यह सिर से लेकर पैरों तक एक गाउन जैसा होता है. जो पूरे शरीर को ढकता है. एक मास्क की तरह मुंह को इसीलिए ढका जाता है ताकि गुनहगार की पहचान केवल ईश्वर तक ही सीमित हो सके. पूरे सप्ताह गलियों में घूम-घूमकर, हाथ में मोमबत्ती और क्रॉस पकड़े यह लोग ईश्वर को याद करते हैं.


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