1942 में जापान ने थाईलैंड और बर्मा को जोडने वाली एक रेलवे लाइन को बनाने का निर्णय लिया ताकि वह अपने मित्र राष्ट्रों के विरुद्ध चलाये गए अपने अभियान को बर्मा तक पहुँच सकें और 16 अक्टूबर 1943 में यह रेलवे लाइन बनकर तैय्यार हो गयी. इस रेलवे ट्रैक को थाई – बर्मा लाइन का नाम दिया गया जिसको बनाने में दूसरे विश्व युद्ध का सबसे भयंकर नर संहार हुआ था.
दूसरे विश्व युद्ध में भारी मात्रा में लोग मारे गए. इस 415 किलोमीटर की रेलवे लाइन को बनाने में हज़ारों लोगों को अपनी जान गवाँनी पड़ी जिसके कारण इसका नाम ‘रेलवे ऑफ़ डैथ’ पड गया. ब्रिटिश ऑफ़ इंडिया पर हमला करना इस रेलवे लाइन के निर्माण का मुख्य उद्देश्य था.
हालाँकि दूसरे विश्व युद्ध के बहुत पहले थाई बर्मा रेलवे लाइन की योजना बनायीं गयी थी लेकिन घने जंगलों में सड़कों के अभाव और विशाल पहाड़ों के कारण इस प्रोजेक्ट पर काम शुरू नहीं हो पाया और वर्ल्ड वॉर II से पहले 1942 में जापानियों ने दक्षिण पूर्व एशिया पर विजय हासिल कर वहाँ के 60,000 लोगों को बंदी बना लिया था.
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चूँकि जापानी इस रेलवे लाइन के कार्य को जल्दी से जल्दी पूरा करना चाहते थे इसलिए उन्होंने बंदी बनाये गए लोगों को इस काम में लगा दिया जिसमें लगभग 13,000 कैदी ऑस्ट्रेलिया के थे . कुछ समय बाद जापानियों को लगा कि यह लोग इस काम को समय पर पूरा करने में असमर्थ हैं तो उन्होंने लगभग 2,00,000 एशियाई मज़दूरों को इस कार्य के लिए प्रलोभन दिए. जब उनमें से कुछेक ने इस काम में हाथ बँटाने से मनाही की तो उनको शोषित कर इस कार्य के लिए राजी किया गया.
यहाँ काम करने वाले मज़दूरों को उचित रूप से भोजन नहीं मिलता था. जिससे उनके स्वास्थ्य में दिन प्रतिदिन गिरावट आने लगी फिर भी उनसे बलपूर्वक कार्य कराया जाता था. धीरे – धीरे भोजन और दवाइयों के अभाव में रोज हज़ारों मज़दूरों की मौत होने लगी. इस सारी योजना का हिस्सा रहे अनेक लोग आज भी जीवित हैं जो उन मज़दूरों की दुर्दशा का बड़ा मार्मिक चित्रण करते हैं.
उस समय के चश्मदीद गवाहों और सूत्रों के अनुसार थाई -बर्मा लाइन को बनाने में 1000 जापानी लोगों सहित लगभग 90,000 बंदी मज़दूर मारे गए जिनमे से 2700 से अधिक ऑस्ट्रेलिया के थे…Next
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