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शिव के आंसुओं से रुद्राक्ष की उत्पत्ति का क्या संबंध है, जानिए पुराणों में वर्णित एक अध्यात्मिक सच्चाई

विषधारक नीलकंठ रौद्र रूप शिव को संहारक और दुखों से मुक्त करने वाला माना गया है. दूसरे के दुखों को दूर करने वाले देवाधिदेव महादेव दुखों के सागर में डूब जाएं और रोने लगें ऐसा संभव नहीं लगता. पुराणों में ऐसा वर्णित है कि एक बार ऐसा भी हुआ. पर संपूर्ण ब्रह्माण्ड को संकटों से निजात दिलाने वाले शिव को आखिर क्या दुख हुआ कि वह रोने लगे और क्या हुआ जब वे रोए.


Hindu God Lord Shiva



देवी भागवत पुराण के अनुसार बहुत शक्तिशाली असुर त्रिपुरासुर को अपनी शक्तियों पर घमंड हो गया और उसने धरती पर उत्पात मचाना शुरू किया. वह देवताओं और ऋषियों को भी सताने लगा. देव या ऋषि कोई भी उसे हराने में कामयाब नहीं हुए तो ब्रह्मा, विष्णु और दूसरे देवता भगवान शिव के पास त्रिपुरासुर के वध की प्रार्थना लेकर गए. भगवान यह सुनकर बहुत द्रवित हुए और अपनी आंखें योग मुद्रा में बंद कर लीं. थोड़ी देर बाद जब उन्होंने आंखें खोलीं तो उनसे अश्रु बूंद धरती पर टपक पड़े. कहते हैं जहां-जहां शिव के आंसू की बूंदें गिरीं वहां-वहां रुद्राक्ष के वृक्ष उग आए. रुद्र का अर्थ है ‘शिव’ और अक्ष मतलब ‘आंख’ जिसका अर्थ है शिव का प्रलयंकारी तीसरा नेत्र. इसलिए इन पेड़ों पर जो फल आए उन्हें ‘रुद्राक्ष मोती’ कहा गया. तब शिव ने अपने त्रिशूल से त्रिपुरासुर का वध कर पृथ्वी और देवलोक को उसके अत्याचार से मुक्त कराया.


Mahadev



धरती पर रुद्राक्ष और इसकी माला का बहुत महत्व है. पुराणों के अनुसार इसे धारण करने वालों पर शिव की कृपा होती है. रुद्राक्ष पहनना पवित्रता का प्रतीक और पापों से मुक्तिदायक माना गया है. पुराणों में ही रुद्राक्ष रखा हुआ पानी पीना धरती पर देवत्व की प्राप्ति करना बताया गया है. इसके अनुसार ऐसे मनुष्य का खाना देवताओं के भोजन के समान पवित्र हो जाता है और वह अपने सभी पापों से मुक्त हो जाता है. इसे पहनना जीवन-मृत्यु के चक्र से मुक्त होना बताया गया है अन्यथा मनुष्य लाखों जन्मों तक जीवन चक्र में बंधा हुआ मृत्युलोक में जन्म लेता रहेगा.


Rudraksha


रुद्र शिव का नाम है. रुद्र का अर्थ होता है संहारक या दुखों से मुक्त करने वाला. जिस प्रकार शिव को प्रसन्न करने के लिए जलाभिषेक किया जाता है उसी प्रकार वृक्षों को भी लगातार पानी की जरूरत होती है. शिव ने अपनी बाजुओं पर इस रुद्राक्ष माला को धारण किया है. संकट और जीवन रक्षा के लिए शिव की आराधना के लिए किए जाने वाला महामृत्युंजय जाप रुद्राक्ष माला के बिना संभव नहीं है.


अलग-अलग पुराणों में रुद्राक्ष के जन्म की कई कथाएं वर्णित हैं. शिव महापुराण के अनुसार एक बार हजारों वर्षों तक तपस्या में लीन रहने के बाद भगवान शिव ने जब आंखें खोलीं तो इतने लंबे समय बाद आंखें खुलने के कारण उनकी आंखों से आंसू की कुछ बूंदें टपक पड़ीं जिनसे रुद्राक्ष वृक्ष उग आए और धरतीवासियों के कल्याण के लिए इस वृक्ष के बीजों को धरती पर बांटा गया.




ऐसी ही एक कथा के अनुसार हजारों वर्षों तक तपस्या में लीन शिव ने जब आंखें खोलीं तो धरतीवासियों को असीम दर्द में डूबा देख उनका हृदय द्रवित हो उठा और उनकी आंखों से आंसू निकल गए. दर्द भरे उनके गर्म आंसुओं के धरती पर गिरने से रुद्राक्ष वृक्ष पैदा हुए.


Mahayogi Lord Shiva



शास्त्रों में रुद्राक्ष धारण करना मारक शनि के प्रकोप से बचने का भी एक कारगर तरीका बताया गया है. इसे पहनने वाले को झूठ और बुरे कर्मों से दूर रहने की सलाह दी जाती है. मनवांछित फलों की प्राप्ति के लिए रुद्राक्ष धारण करना फलदायक माना गया है.


Hindu Religion


त्रिपुरामस प्रकृति (स्थूल, सूक्ष्म, कारण शरीरम्) में रहते हैं. इसलिए त्रिपुरासुर को मारने का एक अर्थ यह भी है कि इन तीनों कमजोरियों पर विजय पाकर पवित्रता की ओर बढ़ने का मार्ग प्रसस्थ होना .

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