बात हो, जहाँ मुसलमान भाई मंदिरों में प्रार्थना करें और हिन्दू भाई मस्जिदों में अजान पढ़ें, जहाँ हिन्दू-मुसलमान के दिलों के बीच धर्म की सरहदे न हो. ऐसा ही कुछ प्रयास ख़बरों के माध्यम से हमने किया है. क्या दुनिया है! एक तरफ किसी मुसलमान के घर गौमांस होने की अफवाह पर उसे लोगोंं द्वारा पिट-पिट कर हत्या कर दी जाती है, वहीं दूसरी ओर किसी मुस्लिम भाई के घर से 200 वर्ष पुराना महाभारत का उर्दू तर्जुमा मिलता है.
लखनऊ में एक मुस्लिम परिवार के पास से 200 साल पुरानी उर्दू में लिखी महाभारत की पुस्तक मिली है. कई सालों पहले भी यहीं से फारसी में लिखी महाभारत मिली थी, लेकिन अब महाभारत का उर्दू अनुवाद भी प्राप्त हुआ है. 200 साल पुरानी उर्दू मेंं दर्ज महाभारत का किसी मुस्लिम परिवार के यहां मिलने से पुरे शहर में यह चर्चा का विषय बन हुआ है. इस पवित्र ग्रंथ में कहीं-कहीं उर्दू का हिंदी अनुवाद भी लिखा हुआ है.
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तर्जुमा पर फरमान अब्बास मंजुल बताते हैं कि उनके पिताजी के परदादा का नाम मवाली हुसैन नकवी नसीराबादी था. वो ब्रिटिश सरकार में बुंदेलखंड रियासत के सेटेलमेंट अफसर थे. मवाली हुसैन नकवी नसीराबादी के द्वारा बनाई हुई लाइब्रेरी में ये किताब सालों से रखी हुई थी. अब उन्हें ये किताब उनके पुस्तैनी मकान रायबरेली की लाइब्रेरी में मिली.
अब्बास मंजुल कहते हैं कि कुछ दिनों पहले वो अपने घर रायबरेली गए थे. वहां उन्होंने मां को यह किताब पढ़ते हुए देखा था. ध्यान से सुनने और समझाने के बाद उन्हें पता चला कि उसकी माँ तो उर्दू में लिखी महाभारत पढ़ रही है. इतिहासकारों का मानना है कि यह किताब 200 साल से भी अधिक पुरानी है. पुराना किताब होने के कारण इसके शुरुआती पन्ने फट चुके हैं, इसलिए यह पता करना मुश्किल है कि इसे लिखा किसने है.
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फरमान ने महाभारत के इस दुर्लभ पुस्तक को एक ट्रांसलेटर वहीद अब्बास लखनवी से भी पढ़वाया. लखनवी ने बताया कि किताब में जिस उर्दू का प्रयोग किया गया है वह पुराने जमाने में ज्यादा प्रयोग होता था. मौजूदा किताब में 10 अध्याय हैं. वहीद का कहना है कि किताब में महाभारत की घटनाओं का छोटा-छोटा सारांश है….Next…
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