कहते हैं विधाता की मर्जी के बिना कुछ नहीं होता पर कभी-कभी विधाता कुछ ऐसा करता है जो इंसानी रिश्तों में बड़े अजीब से हालात पैदा कर देते हैं. महाभारत और रामायण की कहानियां बचपन से हम सुनते आते हैं. किसी न किसी रूप में यह हमें कोई राह दिखाती हैं और इनकी कहानियों को सीख के रूप में ही हमेशा देखा जाता है पर महाभारत-रामायण युग में भगवान के अवतार होने के बावजूद कुछ ऐसे उलझे हुए रिश्ते थे जिन्हें जानकर आप हैरान हो जाएंगे.
महाभारत में पांडव के धनुर्धर और श्रीकृष्ण के गौरव अर्जुन के साथ भी ऐसा ही प्रसंग जुड़ा हुआ है. बात तब की है जब पांडव 12 वर्षों के अज्ञातवास पर थे. द्रौपदी के साथ पांडव विराटनगर के राजा के यहां उनके सेवक बनकर रह रहे थे. उसी समय दुर्योधन ने विराट नगर पर हमला कर इसे जीतने की रणनीति बनाई. इसलिए भीष्म पितामह और कर्ण समेत सेना लेकर दुर्योधन युद्ध के लिए विराट नगर की सीमा पर पहुंच गया. विराट नगर के राजकुमार उत्तर को यह बात पता चली तो वह दुर्योधन से युद्ध करने चल दिया. उस वक्त अर्जुन किन्नर के रूप में विराट नगर के राजमहल में रहते हुए राजकुमारी उत्तरा को नृत्य की शिक्षा दे रहे थे. उत्तर के सारथी के रूप में वही उसके साथ थे. पर युद्धभूमि पहुंचकर दुर्योधन की विशाल सेना देखकर उत्तर भागने लगा. तब अर्जुन ने उत्तर को अपनी सच्चाई बताई और दुर्योधन की सेना से युद्ध कर उसे जीता. जब विराट नगर सम्राट को इसका पता चला उन्होंने अर्जुन से अपनी पुत्री उत्तरा से विवाह का प्रस्ताव रखा लेकिन अर्जुन ने किन्नर रूप में उत्तरा के नृत्य-गुरु होने के कारण उत्तरा से पिता-पुत्री के समान संबंध होने की बात कहकर उत्तरा से विवाह का प्रस्ताव अस्वीकर कर दिया. पर विराट सम्राट से उत्तरा से अपने पुत्र अभिमन्यु से विवाह करने की इच्छा जताते हुए उसे अपना पुत्रवधू बनाने की बात कही. इस तरह उत्तरा अर्जुन की पत्नी और अभिमन्यु की मां बनते-बनते अर्जुन की पुत्रवधू और अभिमन्यु की पत्नी बन गईं.
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बात तब की है जब कर्ण से युद्ध में युधिष्ठिर हार गए और घायल होकर शर्म से अपने निवास स्थान आ गए. अर्जुन यह जानकर कृष्ण के साथ युधिष्ठिर से मिलने आए. युधिष्ठिर को लगा कि अर्जुन कर्ण को पराजित कर उनका बदला लेकर युधिष्ठिर का आशीर्वाद लेने आए हैं लेकिन ऐसा नहीं हुआ जानकर वह अर्जुन पर क्रोधित हो उसे अपना शस्त्र किसी और को दे देने का आदेश दे दिया. इस पर क्रोधित हो अर्जुन ने युधिष्ठिर पर तलवार उठा ली क्योंकि यह अर्जुन की प्रतिज्ञा थी कि जो कोई भी उनसे अपना शस्त्र देने को कहेगा वह उसकी हत्या कर देंगे. तब भगवान श्री कृष्ण ने अपमानित मनुष्य के मरे होने के समान होने की बात समझाकर अर्जुन से युधिष्ठिर का अपमान कर अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने को कहा. अर्जुन ने ऐसा ही किया और पहली बार गुरु समान अपने बड़ी भाई को अपशब्द कह अपनी प्रतिज्ञा पूरी की.
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