रामायण में राम को मर्यादा पुरुषोत्तम जरूर कहा गया है लेकिन रामायण का सबसे बड़ा विलेन और विष्णु रूप राम का सबसे बड़े दुश्मन रावण और उसका प्रिय भाई कुंभकर्ण विष्णु भक्त थे. धरती पर राम की तरह ही वे दोनों भी वैकुंठ के मर्यादा पुरुष थे और अपने धर्म का पालन करते हुए ऋषि के शाप से ग्रस्त होकर धरती पर रावण और कुंभकर्ण के रूप में पैदा हुए और अमर हो गए. भगवत् पुराण में इस प्रसंग का उल्लेख किया गया है.
इसके अनुसार अपने पूर्व जन्म में रावण और कुंभकर्ण क्रमश: जय और विजय नाम के भाई थे. दोनों ही भाई विष्णु निवास ‘वैकुंठ’ के दरबान थे. एक दिन अपने तप बल के प्रयोग से बच्चे के रूप में छल से वैकुंठ में अनाधिकार प्रवेश की कोशिश कर रहे सनत ऋषि को रोक दिया. ऋषि ने दोनों भाइयों की धृष्टता पर क्रोधित होकर उन्हें वैकुंठ से निकाले जाने तथा मृत्युलोक (धरती) में जन्म लेने का शाप दिया. उन्हें विकल्प दिए गए कि शापमुक्त होने के लिए वे साधारण मनुष्यों की तरह विष्णु-भक्त के रूप में सात जन्म लेकर या विष्णु से 3 गुना ज्यादा ताकतवर रावण के रूप में विष्णु-शत्रु के रूप में जन्म लेकर शाप मुक्त हो सकते हैं. जय और विजय भाइयों ने विष्णु-शत्रु रावण के रूप में जन्म लेना स्वीकार किया और इस तरह ये विष्णु भक्त त्रेता युग में रामायण के मुख्य चरित्रों में आकर पोषक विष्णु द्वारा धरती वासियों के लिए सबक देकर सदियों-सदियों के लिए अमर हो गए.
आपने रामायण पढ़ी हो या न पढ़ी हो उससे जुड़े अधिकांश प्रसंग आप जानते होंगे. पर कुछ प्रसंग ऐसे हैं जो रामायण में भी वर्णित नहीं हैं पर रामायण और इसके प्रमुख पात्रों से जुड़े हुए हैं. ऐसे ही कुछ रोचक तथ्य पढ़िए:
रामायण में राम की मर्यादा का बार-बार उल्लेख हुआ है लेकिन रावण की मर्यादा का कहीं उल्लेख नहीं है. राम-रावण युद्ध में जब रावण के सारे पुत्र मारे गए तो राम पर विजय प्राप्त करने के लिए वह यज्ञ करने लगा. राम ने वानर सेना समेत हनुमान और अंगद को यज्ञ अवरुद्ध करने के भेजा. वानर सेना ने बहुत तबाही मचाई पर रावण ने युद्ध बंद नहीं किया. तब अंगद रावण की पत्नी मंदोदरी को बालों से पकड़कर घसीटते हुए रावण के सामने लेकर आए और मंदोदरी ने रावण से राम की तरह अपनी पत्नी की रक्षा करने की याचना की. अपनी पत्नी की रक्षा के लिए रावण ने यज्ञ रोक दिया और इस धृष्टता के लिए अंगद का सिर कलम कर दिया. हालांकि अंगद का लक्ष्य पूरा हो गया लेकिन रावण ने अपनी पत्नी के अपमान के लिए अपने प्राणों की भी परवाह न करते हुए यज्ञ बीच में ही रोक दिया.
अपने सभी भाइयों में कुंभकर्ण बहुत बुद्धिमान और बहादुर माना जाता था. रावण से ज्यादा इंद्र को कुंभकर्ण से डर था और वह इसका कोई उपाय करना चाहते थे. एक बार कुंभकर्ण, रावण और विभीषण ने ब्रह्मा की तपस्या कर उन्हें प्रसन्न कर लिया. जब प्रकट होकर ब्रह्मा जी ने कुंभकर्ण से वर मांगने को कहा तो ‘इंद्रासन’ की जगह गलती से उसके मुंह से ‘निद्रासन’ निकल गया. प्रसंग के अनुसार इंद्र ने सरस्वती से अपना आसन बचाने की याचना की थी और इसलिए वर मांगते समय सरस्वती से कुंभकर्ण की जिह्वा को मुंह में ही सिल दिया और वह निद्रासन बोलकर सोने के लिए प्रसिद्ध हो गया.
लक्ष्मण द्वारा नाक काटे जाने के बाद शूर्पनखा के नाम से प्रसिद्ध हुई रावण की यह बहन बचपन में बहुत खूबसूरत थी और इसका वास्तविक नाम मीनाक्षी था. मीनाक्षी का विवाह दुष्टबुद्धि से हुआ था जो पहले तो रावण के दरबार में मंत्री बना लेकिन बाद में रावण द्वारा वध किया गया. प्रसंग के अनुसार शूर्पनखा का लक्ष्मण या राम के लिए कोई आकर्षण नहीं था बल्कि वह रावण से बदला लेना चाहती थी इसलिए आकर्षण का स्वांग रचाकर उसने लक्ष्मण से अपनी नाक कटवाई और रावण के वध के लिए राम से उसकी दुश्मनी पैदा की.
-रावण शिव और ब्रह्मा का बहुत बड़ा भक्त था. एक बार वर्षों तक ब्रह्मा की तपस्या करते उसने अपना सर काटकर शिवलिंग पर चढ़ा दिया. पर उसके कटे सिर की जगह फिर सिर उग आया. उसने फिर उसे काटकर शिवलिंग पर चढ़ा दिया. ऐसा उसने दस बार किया. इस तरह दसों बार उसका सिर उग आया. अंतत: ब्रह्मा जी उसके त्याग से प्रसन्न होकर प्रकट हुए और वर मांगने को कहा. रावण ने अमरता का वरदान मांगा जिसे ब्रह्मा ने एक मनुष्य को नहीं दे सकने की विवशता बताई और उसके दस सिर होने का वरदान दिया. इस तरह रावण दशानन बन गया और उसे मारना दसों दिशाओं के लिए असंभव बन गया.
-एक बार शिव से मिलने के लिए कैलाश में प्रवेश से रोकने पर रावण ने नंदी को अपमानित किया और नंदी ने उसे शाप दिया कि वह वानरों द्वारा मारा जाएगा.
राम हमेशा ही ज्ञानी माने जाते रहे किंतु राम का तीर लगने के बाद युद्धभूमि में मरने की हालत में राम उसके पास आए और रावण द्वारा तीनों लोकों पर राज्य करने की बात कहते हुए उससे राजा बनने के प्रभावी गुर सिखाने की बात कही. तब रावण ने राम द्वारा सर्वज्ञाता होते हुए भी उसे वह मान देने के लिए कृतज्ञता प्रकट की. रावण ने जो कहा वह रामायण की प्रमुख सीखों में एक है. रावण ने कहा कि उसके पास धन, वैभव और भगवान का आशीर्वाद भी था लेकिन इसके बावजूद वह नष्ट हो गया क्योंकि उसके पास एक चीज नहीं थी वह थी अहंकार पर विजय पाने की कोशिश और शक्ति. इसलिए मरते हुए मैं एक इंसान रूप में राजा बनने का सबसे बड़ी सीख देता हूं कि हर रोज हमारे मस्तिष्क में अच्छे और बुरे विचार दोनों आते हैं. अच्छे विचारों पर आज काम करो और बुरे विचारों को कल के लिए छोड़ दो. इस तरह आप हमेशा एक अच्छे शासक साबित होंगे.
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