दिल्ली से एक घंटे की ड्राइव और आप हरियाणा की सीमा पर स्थित एक छोटे से गांव में पहुंचते हैं. गांव का नाम है डिचाऊं कलां. पक्के प्लास्टर किए हुए मकानों वाला यह गांव भारत के एक संपन्न गांव की तस्वीर पेश करता है. लेकिन इस गांव में भी कोई एटीएम, डिस्पेंसरी, बैंक या डिपार्टमेंटल स्टोर नहीं है. यहां तक की प्राइमरी स्कूल भी नहीं है. इस लिहाज से यह गांव भारत के किसी अन्य गांव सरीखा ही लगता है. हालांकि इस गांव की एक खासियत इसे देश के किसी दूसरे गांव से बिलकुल अलग कर देती है. इस गांव के हर घर के बाहर सीसीटीवी कैमरा लगे हैं.
इन छोटे-छोटे यंत्रों को देखकर मन में कई सवाल उठते हैं. आखिर इस गांव में इतने सारे सीसीटीवी कैमरों की क्या जरूरत है? गांव के बडे –बुजुर्ग बताते हैं कि सीसीटीवी कैमरा अब इस गांव की जिंदगी में अहम हिस्सा बन चुके हैं. यह गांव दिल्ली के बाहर काम करने वाले कुछ सबसे खतरनाक गैंग्स की युद्धभूमि रहा है. ये कैमरे गांंव के लोगों को अपने दोस्तों और दुश्मनों पर नजर रखने में मदद करते हैं.
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कुछ दिन पहले ही गांव में पूर्व विधायक भरत सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी और गांव वालों को डर है कि भरत सिंह का भाई कृष्ण पहलवान अपने भाई का बदला लेने के लिए किसी बड़ी घटना को अंजाम दे सकता है. गांव में मौजूद भारी पुलिस बल इस डर के वातावरण में और इजाफा करती है. हथियारों से लैस पुलिसबल को भरत सिंह के घर के आगे पहरा देते हुए देखा जा सकता है.
लोगों की कानाफूसी में भरत सिंह की हत्या में उनके पड़ोसी उदयवीर कला का हांथ होने की बात पता चलती है. उदयवीर काला का घर भरत सिंह के घर से कुछ ही दूरी पर स्थित है. उदयवीर और कृष्ण पहलवान में पुरानी दुश्मनी है. उदयवीर भरत सिंह की हत्या में मुख्य अभियुक्त है. कुछ महीने पहले उदयवीर पैरोल पर रिहा हुआ था पर वह तबसे अपने घर नहीं लौटा.
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उदयवीर के घर के आगे भी हथियारों से लैस भारी पुलिसबल 24 घंटे पहरा देती रहती है. घर में एक भी पुरूष नहीं रहता, सिर्फ औरते ही घर में है और वे अपने आपको कमरेमें बंद करके रखती हैं. कोई भी सीधे उदयवीर के घर या ऑफिस में नहीं जा सकता. उसे पहले अपना चेहरा घर के बाहर लगे कैमरा में दिखाना होता है और माइक्रोफोन पर बात करके घर में आने की अनुमति लेनी पड़ती है.
कृष्ण पहलवान के परिवार का एक सदस्य बताता है कि अगर उनके घर में कोई आदमी आया तो पुलिस से पहले हम उसके पास पहुंच जाएंगे. लेकिन हम दूसरे के घर की औरतों के मुंह नहीं लगते और उन्हें डरने की कोई जरूरत नहीं है.
गांव के कुछ लोग बताते हैं कि किस तरह इन परिवारों की दुश्मनी के कारण पूरे गांव को डर के साए में जीना पड़ रहा है. गांव के एक व्यक्ति ने बताया, “यहां न कोई बैंक है, न सुनार की दुकान पर हम हर समय सीसीटीवी कैमरे के निगरानी में जिने को मजबूर हैं.” गांव वालों के अनुसार हम अगर किसी पक्ष के आदमी से बात भी करे तो दूसरा पक्ष हमें अपना दुश्मन समझ बैठता है. गांव में होने वाले गैंगवार के कारण आम ग्रामीण की जान भी हमेशा जोखिम में रहती है. Next…
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