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मुक्ति का सर्टिफिकेट: हर पाप का चालान

आपकी कार से कोई बिल्ली मर गई हो या भूलवश आपसे कोई पाप हो गया हो तो डरने की बात नहीं. इस दुनिया में जहां हर चीज का इलाज है वहीं भारत में आपको हर पाप का प्रायश्चित करने का सामान मिलेगा. पुण्य कमाना है तो चार धाम घूम आइए और अगर पाप धोने हैं तो हरिद्वार नहा लीजिए. इतना ही नहीं भारत में एक ऐसी जगह भी है जहां नहाने के बाद आपके पाप तो धुल ही जाएंगे साथ में आपको सर्टिफिकेट भी मिलेगा.


डुबकी लगाओ और पाप मुक्ति प्रमाण पत्र ले जाओ

जी हां, जिस जगह पाप धोने और सर्टिफिकेट बांटने का काम होता है उस जगह का नाम है राजस्थान में गौतमेश्वर. मान्यता है कि यहां के मंदाकिनी कुंड में नहाकर इंसान के पाप धुल जाते हैं और इस पाप धोने के बाद आपको मिलता है “सर्टिफिकेट”.


लोग यहां अपनी गलतियों का प्रायश्चित करते हैं और पुजारी उनको प्रमाण पत्र जारी कर देते हैं. और इसके लिए आपको खर्च करने होते हैं मात्र 15 रुपए.


कहानी मंदाकिनी कुंड की

माना जाता है कि महर्षि गौतम को अपने ऊपर लगे गोहत्या के आरोप से यहीं मुक्ति मिली थी और तब से लोग अपने गुनाह धोने के लिए यहां आते रहे हैं.  मंदाकिनी कुंड के जल को गंगा जैसा पवित्र माना जाता है. यह भी मान्यता है कि इस कुण्ड मे स्नान करने पर यदि आपके शरीर से लाल पानी टपके तो मान लें कि आपके पाप धुल गये हैं.


कौन-कौन आते हैं पाप धोने?

राजस्थान में गौतमेश्वर महादेव मंदिर के मंदाकिनी कुंड में अधिकतर जीव-हत्या करने वाले लोग नहाने आते हैं. यहां आने वालों में अधिकतर बेहद निम्न और मध्यम वर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाले लोग हैं. इन लोगों के लिए पाप-पुण्य के काफी मायने होते हैं. हिंदू धर्म में जीवन के बाद पाप-पुण्य के हिसाब के आधार पर नर्क और स्वर्ग दिया जाता है इसलिए हर इंसान अपने हिस्से के पाप धरती पर ही खत्म करना चाहता है. लेकिन एक बड़ी अजीब चीज सामने आई है कि इस कुंड में कभी कोई नेता या बड़ा अधिकारी नहाने नहीं आता.


क्या नेता नहीं करते पाप?

इस कुंड में नहाने के लिए लोग दूर-दराज से आते हैं लेकिन कभी कोई नेता यहां आकर अपने पाप धोने का कष्ट नहीं उठाता. मंदिर के पुजारी के अनुसार जो नेता मलाई खाने में व्यस्त होते हैं उन्हें पाप और पुण्य़ का हिसाब ही नहीं होता. यहां तक कि पुजारी खुद भी अगर किसी नेता के पास किसी काम के लिए जाते हैं तो वह कहते हैं बाबा कुछ दो तब काम होगा.


संत रैदास ने यूं तो “मन चंगा तो कठौती में गंगा” जैसे जुमले से साफ कर दिया था कि पाप धोने के लिए मन साफ होना चाहिए लेकिन इस देश की मजबूत धार्मिक आस्था में जड़ बना चुके इस कुंड की आस्था लगातार फल-फूल रही है. बस दर्द है तो इस बात का कि आखिर क्यूं ऐसी जगह कोई बड़ा नेता या अफसर नहीं आता? क्यूं भ्रष्ट नेताओं और अफसरों का जमीर नहीं जागता? क्या भ्रष्ट होने पर दिल से धर्म का नाम मिट जाता है?


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