‘आपको मेरी लिखी कहानियां वाहियात या अश्लील लगती है, लेकिन सच तो ये है कि ये दुनिया जिसमें हम जी रहे हैं, ये ही वाहियात है. मेरी कहानियां तो बस इनका सच सामने लाती है.’
सहादत हसन मंटो की लिखी ये लाइनें उस समाज पर एक जोरदार तमाचा है, जिस समाज में हम आज भी रहते हैं. मंटो खुद को खुद की जेब पर डाका मारने वाला जेबकतरा मानते थे.
तवायफों, मोची और तांगेवालों के मसीहा ‘मंटो’
मंटो की कहानियों की तरह ही उनकी शख्सियत भी बेहद दिलचस्प थी. उन्हें तवायफों, मोची और तांगेवालों के ‘मसीहा’ के तौर पर देखा जाता था, ऐसा मसीहा जो उनसे जुड़े सच और उनकी हर पल घुटती जिदंगी सबके सामने लाया करता था.
हैरानी की बात ये थी कि दूसरे लेखकों की तरह मंटो ने कभी अपनी कहानियों में नैतिकता का पाठ नहीं पढ़ाया, बल्कि वो खुद शराब के नशे में डूबकर कहानियां लिखा करते थे. वो कई दिनों तक गायब हो जाते, किसी को उनका अता-पता नहीं होता था. उन्हें न अपने नाम की परवाह थी न दुनियादारी की.
जब इस्मत चुगतई और मंटो पर चला मुकदमा
आज के दौर में फिल्मों के कई ऐसे सीन तक काट दिए जाते हैं, जो समाज का असली चेहरा सामने लाते हैं. बेशक, यहां निजी दृश्यों को खुलेआम दिखाया जाता है और जिन चीजों को पर्दे पर बैन किया जाना चाहिए, उसे फिल्म का महत्वपूर्ण हिस्सा मान लिया जाता है. फिल्म ‘उड़ता पंजाब’ पर चली घमासान और कट का खेल तो आपको याद ही होगा लेकिन कभी वो दौर हुआ करता था, जब मंटो और इस्मत चुगतई पर अश्लील लेखन का मुकदमा चला था.
मंटो और इस्मत चुगतई बेहद अच्छे दोस्त थे. इस्मत की लिखी ‘लिहाफ’ को अश्लील मुद्दा मानते हुए उन्हें अदालत में तलब किया गया था. अदालत के मुताबिक उन्होंने ऐसे मुद्दे पर लिखा था, जिसे अश्लील और असमाजिक माना जाता था. लिहाफ में ‘लेस्बियन’ और ‘गे’ मुद्दे और हालातों पर आधारित एक सच्ची घटना को कहानी का रूप दिया गया था. वहीं मंटो की कहानी ‘बू’ को अश्लील माना गया था. इसमें ‘छाती’ शब्द को अश्लील माना गया. अदालत में उपस्थित गवाह के मुताबिक औरतों के सीने को छाती कहना अश्लीलता है यानि उनके वक्षों का उल्लेख किया जाना अश्लील से भी अश्लील बात है. इस्मत चुगताई के लिखे इस संस्मरण में अदालत में जो कुछ भी हुआ, उसे विस्तार से बताया गया है.
“यह कहानी अश्लील है?” मंटो के वकील ने पूछा.
“जी हाँ.” गवाह बोला.
“किस शब्द में आपको मालूम हुआ कि अश्लील है?”
गवाह : शब्द “छाती!”
वकील : माई लार्ड, शब्द “छाती” अश्लील नहीं है.
जज : दुरुस्त!
वकील: शब्द “छाती” अश्लील नहीं.
गवाह: “नहीं, मगर यहाँ लेखक ने औरत के सीने को छाती कहा है.” मंटो एकदम से खड़ा हो गया, और बोला “औरत के सीने को छाती न कहूं तो मूंगफली कहूं.” कोर्ट में ठहाका लगा और मंटो हंसने लगे. “अगर अभियुक्त ने फिर इस तरह का छिछोरा मजाक किया तो अदालत की अवेहलना (कंटेम्पट ऑफ कोर्ट) के जुर्म में बाहर निकाल दिया जायेगा या फिर सजा दी जायेगी.” मंटो को उसके वकील ने चुपके-चुपके समझाया और वो समझ गए. बहस चलती रही और घूम-फिरकर गवाहों को बस एक “छाती” मिलता था जो अश्लील साबित हो पाता था.
‘अश्लील कहे जाने वाला लेखक मंटो धीरे-धीरे मर रहा था’
उनके मित्र कथाकार कृशन चंदर के संस्मरण के मुताबिक ‘कोई कहता कि मंटो मर रहा है कोई कहता कि वो एक अर्से से लगातार मर रहा है. शायद उसके सभी दोस्तों ने उसके साथ रिश्ते तोड़ लिए थे. पता नहीं इन फसानों में कितनी सच्चाई थी. लेकिन उन्हें इन बातों पर इसलिए भी विश्वास नहीं होता था क्योंकि, मंटो की कहानियां लगातार आती रहती थी. मंटो को किसी तरह के सम्मान या ईनाम से कोई खास वास्ता नहीं रहा. हां, लेकिन उन पर अश्लील लेखन के कई आरोप लगे, जिसे सुनकर वो हर बार मुस्कुरा दिया करते थे’. उनकी उम्र 42 रही होगी कि एक रोज खबर आई कि वो अब इस दुनिया में नहीं रहे. उनकी मौत भी उनकी जिदंगी की तरह खामोश ही रही. उनकी मौत पर कोई रोने वाला नहीं था. कहते हैं कि जब एक रोज कृशन चंदर अपने किसी मित्र के साथ तांगे से कहीं जा रहे थे. इस दौरान वो मंटो के बारे में अपने दोस्त से बहस कर रहे थे. तांगे वाला उनकी बहस को काफी देर से सुन रहा था. अचानक उसने पूछा ‘क्यों साहब, वो मंटो मर गया?’ कृशन जी ने धीरे से ‘हां’ में सिर हिलाया. इतना सुनते ही तांगेवाले ने तांगा रोक दिया और आंसू पोंछते हुए बोला ‘बस, साहब अब हमसे न चलाया जायेगा तांगा. इतना कहकर वो तांगा खड़ा करके सीधा चलता चला गया. उसने एक बार भी पीछे मुड़कर नहीं देखा.
मंटो की अलग दुनिया
मंटो की कहानियों में वो पात्र होते हैं जो दुनिया से अलग दिखते हैं. अपने कायदे और उसूल खुद बनाते हैं. बने-बनाए दकियानूसी धारणों से उन्हें कोई सरोकार नहीं होता…Next
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