हम भलीभाँति जानते हैं कि किसी देश की सुरक्षा का दायित्व वहाँ की सेना के काँधों पर टिका होता है जिसको निभाते हुए कई जाँबाज सिपाही वीरगति को प्राप्त हो जाते हैं . इन बहादुर सिपाहियों को अंतिम विदाई देने के लिए सेना विभाग द्वारा एक विशेष प्रकिया अपनायी जाती है, जिसमे अंतिम संस्कार के समय, सम्मान देने के प्रयोजन से सेना द्वारा बंदूकों से एक विशेष क्रम की फायरिंग की जाती है जो कोई सामान्य पहलू नहीं है बल्कि यह सेना के अनुशासन और परम्परा को दर्शाता है.
इसी प्रकार अमेरिका के ’21-गन सल्यूट’ प्रक्रिया की जड़ें भी पुरानी परम्परा को बयाँ करती हैं जिसमे सैनिक अपनी बंदूकों (राइफल) को ज़मीन पर टिकाकर अपनी शान्ति की मंशा को दिखाते हैं और शहीद जवान के प्रति सम्मान को व्यक्त करते हैं. इस प्रथा का चलन चौहदवीं शताब्ती से है जब सेना का कोई शिप किसी दूसरे देश के बंदरगाह में प्रवेश करता था तो जहाज़ के सदस्यों द्वारा फायरिंग करके यह बताया जाता था कि उन्होंने वहाँ पर शांतिपूर्ण रूप से व्यवसाय या किसी अतिरिक्त लेन देन के प्रयोजन से प्रवेश किया है .
इसी प्रकार जब कोई ब्रिटिश शिप किसी विदेशी बंदरगाह पर प्रवेश लेते समय 7 बार एयर फायरिंग करता था क्योंकि उनके शिप में सात जवान बन्दूक के साथ मौजूद होते थे जो एक एक कर 7 बार फायर करते थे . बदले में बंदरगाह पर मौजूद सैनिक सुरक्षित परिस्तिथियों का इशारा देने के लिए 21 बार फायरिंग करते थे, मतलब समुन्द्र तट पर मौजूद 7 राइफल मैन 3-3 बार फायरिंग कर उनका स्वागत करते थे .
इस तरह 21 बार फायरिंग करना सेना के जवानो और अधिकारी पद के लोगों के लिए सलामी देने का तरीका बन गया . 1730 में ब्रिटिश सरकार ने इसको औपचारिक रूप से सम्मान और शान्ति का प्रतीक चिन्ह बना दिया जो समय के साथ वीरगति प्राप्त जवान को शांति और आदर के साथ अंतिम सलामी देने का तरीका बन गया. यह भी कहा जाता है कि यह प्रतिक्रिया पूरी तरह पवित्र ग्रन्थ ‘बाइबिल’ से प्रभावित है..Next
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