ऐसा नहीं कि यहां कभी कोई अपराध नहीं होता लेकिन 210 लोगों की इस बस्ती में आजतक कभी किसी पर केस नहीं हुआ. इस बस्ती का नाम है चलकारी बस्ती जो झारखंड के धनबाद जिले में रहने वाले आदिम जनजाति बिरहोरों की है. इस जनजातीय समाज ने आजतक अपने ऊपर देश के कानून को लागू नहीं होने दिया है. दरअसल इस समाज का अपना अलग ही कानून है. इस समाज का कानून उतना ही निराला है जितना खुद यह समाज.
इस समाज के कानून में जूर्म चाहे जो हो, सजा या जुर्माने के तौर पर शराब मिलती है. मसलन, मारपीट की सजा, 2 बोतल शराब. चोरी की सजा, 5 बोतल शराब. किसी की हकमारी या उससे बड़े अपराध की सजा, 10 बोतल शराब. यहां चलकारी बस्ती में हर अपराध पर बतौर जुर्माना शराब पिलाने की सजा दी जाती है. अपराध छोटा हो तो जुर्माना 1 से 6 बोतल शराब और बड़ा हो तो 7 से 10 बोतल शराब.
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इस बस्ती के बड़े-बुजुर्ग बताते हैं कि आजतक इस बस्ती से कोई भी मामला थाना नहीं पहुंचा है. हर अपराध की सजा समाज खुद ही तय करता है. यहां अपराधी को पूरे समाज को शराब पिलानी पड़ती है. दरअसल इस समाज की संस्कृति में शराब बेहद महत्वपूर्ण चीज है.
बिरोहर जाति की शादियों में बरातियों के समक्ष खाने के लिए केवल दो ही चीज परोसी जाती है- एक साग और दूसरा भात यानी चावल. लेकिन इन दो चीजों के साथ शराब का होना आवश्यक है. जब बच्चे का जन्म हो तो नाच-गाने के साथ शराब का दौर तबतक चलता है जबतक की नवजात की नाल ना गिर जाए.
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यहां जंगली जानवरों के शिकार करने के अपराध स्वरुप अजीबोगरीब सजाएं दी जाती है. अगर किसी ने सियार को मारा तो उसे एक मुर्गे की बलि देनी पड़ेगी. इसके अलावा उस पर शराब पिलाने का जुर्माना भी लगा सकता है. वहीं अगर किसी ने तेंदुआ को मार दिया, तो उसे बकरे की बलि देनी पड़ती है. साथ ही समाज उस पर 10 बोतल शराब का जुर्माना भी लगा सकता है. Next…
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