उसकी मरजी किसी ने पूछी नहीं, न किसी से उसने इसकी शिकायत ही की…क्योंकि उसे पता है कि होगा वही जो वह चाहता है. कोई अगर इसे हादसा कहता है तो यह हादसा नहीं बल्कि उसकी जिंदगी की हकीकत है. पर वह एक लाचार नारी के सिवा वहां कुछ भी नहीं. चाहकर भी न वह किसी से दर्द बयां कर सकती है, न कोई उसके इस दर्द की कोई दवा दे सकता है.
वह महिला अगर चीन में होती तो शायद सजा की हकदार होती लेकिन वह भारत में है तो सुरक्षित है. उसकी सजा का कारण हैं उसके बच्चे. उसकी खुशी थी मां बनना लेकिन यही खुशी उसकी जिंदगी की शायद सबसे बड़ी सजा बन गई. एक मां अपने बच्चों का चेहरा देखकर खुश हो जाती है लेकिन उसका दर्द यह है कि अपने बच्चों का चेहरा देखकर वह दुखी होने के लिए मजबूर है. और शायद बार-बार विधाता से पूछती होगी कि आखिर उसे इतनी बड़ी सजा क्यों? मां होकर भी वह मां नहीं है…आखिर ऐसा क्यों?
वह एक नहीं बल्कि 10 बच्चों की मां है. लेकिन उन दस बच्चों के साथ वह रह नहीं सकती. कुछ चीजें आज भी विधाता की मर्जी से ही होती है. उसके लिए यह भी शायद विधाता की मर्जी ही है. इसके दसों बच्चे आज सुर्खियों में हैं लेकिन यह इसके लिए खुशी की नहीं दुख की बात है. ऐसा संतान सुख कोई भी नहीं चाहेगा.
मध्य प्रदेश के रीवा शहर उस वक्त मीडिया की सुर्खियों में आ गया जब यहां अंजू नाम की गर्भवती महिला के 10 बच्चे होने की खबर आई. रीवा के संजय गाधी मेमोरियल अस्पताल में 28 वर्षीय अंजू ने 10 बच्चों को जन्म दिया. हालांकि सभी बच्चे समय से पहले जन्म लेने के कारण मृत पैदा हुए लेकिन मेडिकल साइंस के इतिहास में भी यह एक अजूबा से कम नहीं. डॉक्टर भी इसे एक अजूबा ही मान रहे हैं.
मध्य प्रदेश में सतना जिले की अंजू कुशवाहा और संतोष की शादी 10 साल पहले हुई थी. तब से उनके कोई बच्चा नहीं था. चार महीने पहले अंजू के पेट में दर्द होने के बाद जब संतोष ने स्थानीय डॉक्टरों को दिखाया तो उन्हें समझ नहीं आया. जबलपुर आकर वहां डॉक्टरों को दिखाने पर पता चला कि अंजू के पेट में एक से अधिक भ्रूण पल रहे हैं. डॉक़्टरों ने इसे चिंताजनक बताते हुए तत्काल संतोष से अंजू का ‘फीडल रिडक्शन’ कराने की बात कही. इस प्रक्रिया में एक भ्रूण को बचाते हुए अन्य भ्रूण को नष्ट कर दिया जाता है. संतोष इसके लिए तत्काल तैयार नहीं था. बीते रविवार आधी रात के करीब अंजू के पेट में तेज दर्द हुआ. संतोष उसे संजय गाधी मेमोरियल अस्पताल लेकर गया लेकिन अस्पताल पहुंचने से पहले रास्ते में ही 9 बच्चों का जन्म हो चुका था. अस्पताल में 10वें बच्चे का जन्म हुआ लेकिन प्री-मैच्योर बारह माह के इस बच्चे को भी बचाया नहीं जा सका.
डॉक्टरों की मानें तो यह घटना अजूबा है लेकिन शायद बांझपन के ईलाज में दवाईयों के ज्यादा इस्तेमाल का कुप्रभाव हो सकती है. हालांकि अंजू और उसके परिजन सतना के स्थानीय डॉक्टरों की दवाईयों के अलावा बांझपन के लिए अन्य किसी भी प्रकार के डॉक़्टरी इलाज लेने से इनकार करती है लेकिन डॉक्टर अंजू का मेडिकल इतिहास जानने की कोशिश कर रहे हैं कि कहीं उसने कभी आईवीएफ ट्रीटमेंट तो नहीं लिया था. बहरहाल हर किसी के लिए यह एक अजूबा खबर है लेकिन अंजू के लिए यह एक और दुख भरी खबर है. 10 साल के बाद दस बच्चों के मां बनकर भी उसके आज भी बच्चा नहीं है.
Woman Gives Birth 10 Babies
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