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सड़कों पर रद्दी बीनने वाली महिला ने ऐसे पूरा किया पांच रुपए से करोड़ों का सफर

आज चाहे हम कितने भी आधुनिक क्यों न हो जाएं लेकिन हम में से अधिकतर लोग किस्मत या भाग्य पर यकीन करते हैं. किस्मत कब बदल जाए, इसके बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता. आप अपने आस-पास रोजाना ऐसे कितने ही लोगों को देखते होंगे जो कम मेहनत करके भी बुलन्दियों को छूते हुए नजर आते हैं जबकि कुछ लोग कड़ी मेहनत करने के बावजूद उस मुकाम पर नहीं पहुंच पाते, जिनका सपना वो देखते हैं. लेकिन इन सब बातों से परे एक सच ये भी है कि किस्मत भी देर-सवेर उन्हीं लोगों का साथ देती है जिन्हें अपनी मेहनत पर यकीन होता है. साथ ही उनमें कुछ कर गुजरने का जुनून होता है. अपने ऐसे ही जुनून और कुछ कर गुजरने के जज्बे के साथ मंजुला वाघेला ने दुनिया के सामने एक मिसाल कायम की है.


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आपको ये बात जानकर हैरानी होगी कि वर्ष 1981 तक मंजुला सड़कों और गलियों में रद्दी उठाने का काम किया करती थी. जिससे दिन भर में मुश्किल से उनकी पांच रुपए की कमाई हो पाती थी. बरसात या सर्दी के मौसम में तो उन्हें खाली हाथ ही घर लौटना पड़ता था. लेकिन उनके मन में हमेशा समाज के लिए कुछ नया करने का भाव था. लेकिन आज 2015 में 60 साल की मंजुला करोड़ों रुपए कमाती हैं. यही नहीं खुद को आत्मनिर्भर और सशक्त बनाने के साथ, उन्होंने 400 से भी ज्यादा लोगों को नई दिशा दी है. मंजुला क्लीनर्स को-ऑपरेटिव सोसाइटी चलाती है, जिसमें 400 सदस्य है. यह सोसाइटी अहमदाबाद की 45 संस्थाओं को अपनी सेवा देती है. दशकों पहले 5 रुपए कमाने वाली मंजुला की संस्था का टर्न ओवर आज करोड़ों रुपए है.


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5 रुपए से करोड़ों के सफर के बारे में बात करते हुए मंजुला बताती हैं ‘मेरे साथ शुरूआत में करीब 40 महिला जुड़ी, कई संस्थाओं के सहयोग से ‘नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ डिज़ाइन ने हमें काम दिया. इसके बाद फिजिकल रिसर्च लैब ने हमारे ग्रुप से 15 महिलाओं को चुना. इसके बाद पांच साल की लगातार कोशिशों की बदौलत हमारी अपनी संस्था का पंजीकरण सम्भव हो सका’. पहले जहां हाथों या साधारण झाडू की मदद से साफ-सफाई की जाती थी. वहां आज संस्था की महिलाएं सफाई के लिए आधुनिक उपकरणों के साथ साफ-सफाई करती हुई नजर आती हैं. मंजुला वाघेला हिम्मत न हारने के सन्देश देने के साथ, भाग्य के भरोसे न बैठने की एक जीती-जागती मिसाल है…Next


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