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जब एक मिनट में हो गए 61 सेकेंड !!

अभी तक आप यही पढ़ते और सुनते आए हैं कि एक मिनट में 60 सेकेंड होते हैं, जो ना कभी बढ़ सकते हैं और ना कभी कम होते हैं. लेकिन हाल ही में हुई एक घटना आपको इस मसले पर फिर से एक बार सोचने के लिए विवश कर देगी.

आपको यह जानकर बेहद हैरानी होगी कि गत शनिवार को दुनिया भर की सभी इलेक्ट्रॉनिक घड़ियों में एक सेकेंड बढ़ा दिया गया ताकि वो धरती की परिक्रमा से तालमेल बनाकर रख सकें.


परिवर्तन के कारण बदलाव की जरूरत

यह बात तो आप जानते ही होंगे कि घड़ियों के आविष्कार से पहले लोग वक्त का अंदाजा लगाने के लिए आकाश में चांद और सूरज के स्थान को देखा करते थे. लेकिन विज्ञान के विकास के बाद यह बात सामने आई कि मौसम और भूगर्भीय सक्रियता के कारण यह कतई जरूरी नहीं है कि एक दिन में 24 घंटे ही हों. इससे यह स्पष्ट होता है कि समय-समय पर दुनिया की घड़ियों में बदलाव करने की आवश्यकता है.


वैज्ञानिकों का कहना है कि इस प्रक्रिया से कंपनियों और विभिन्न संस्थाओं को असुविधा होती है, इसीलिए उनका दबाव है कि वक्त में परिवर्तन नहीं किया जाना चाहिए.


छेड़छाड़ से बढ़ेगा खतरा

वहीं दूसरी ओर ऐसे भी लोग हैं जो समय बदलने का समर्थन करते हैं. उनका कहना है कि अगर ऐसा नहीं किया जाता तो यह प्राकृतिक व्यवस्था में बाधा उत्पन्न करना होगा.


अगर मिनट में एक सेकेंड की बढ़ोत्तरी नहीं की जाती है तो यह समय और पृथ्वी की परिक्रमा करने के बीच दूरी को और अधिक बढ़ा देगा. अगर कई दशकों तक ऐसा नहीं किया गया तो दिन में रात का वक्त दिखेगा और रात में दिन का.


कुछ सरकारें और वैज्ञानिक भी घड़ियों में कथित छेड़छाड़ के सख्त खिलाफ हैं. उनका कहना है कि इससे दुनिया भर के कंप्यूटर नेटवर्कों को खतरा हो सकता है.


समय मापन के स्टैंडर्ड तरीके

उल्लेखनीय है कि समय को मापने के लिए दो अंतरराष्ट्रीय तरीके निर्धारित किए गए हैं. एक है अंतरराष्ट्रीय एटॉमिक टाइम, जो दुनियां भर की एटॉमिक घड़ियों पर आधारित हैं और दूसरा यूनिवर्सल टाइम 1, जो ग्रीनविच मीन टाइम का उत्तराधिकारी है जिसमें वक्त का निर्धारण आकाश में सूर्य के स्थान से किया जाता है.


पहले तरीके के अंतर्गत एटॉमिक घड़ियों में लगभग हर 18 महीनों के भीतर सुधार किया जाता है ताकि समय मापने के तरीकों में एक सेकेंड से ज्यादा का फर्क ना हो सके.


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