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पंजाब के एक छोट से गांव नारासणगढ़ जिला फतेहगढ़ साहिब से टूरिस्ट वीजे पर दुबई जाने वाली 25 साल की मनप्रीत कौर को बीते 16 फरवरी को दिल का दौरा पड़ा और इसी दिन इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई। गणित विषय से एमएससी करके दुबई जाने वाली मनप्रीत कौर के मेहनत मजदूरी करने वाले पिता कीरत सिहं के पास इतना पैसा नही था कि वो अपनी बेटी के शव को वापस भारत ला पाते। इस बेहद मुश्किल वक्त में सरबत दा भला ट्रस्ट ने एक लाचार पिता की फरियाद सुनी। सरबत दा भला ने मनप्रीत के शव को वापस भारत लाने के लिए हर मुमकिन प्रयास किया। इस ट्रस्ट के संचालक डा एस पी ओबराय ने दुबई में स्थित अपनी ब्रान्च के जरिये मनप्रीत के शव को भारत लाने के लिए सभी जरूरी कागजी कानूनी कार्यवाहिया पूरी की। फिर दुबई स्थित भारतीय दूतावास की मदद से मनप्रीत कौर के पार्थिव शरीर को 7 मार्च को भारत लाया गया। जब ये पार्थिव शरीर श्री गुरू रामदास जी इन्टरनैशनल एयरपोर्ट पर पहुचा उस वक्त कीरत सिह और उसके घरवालो के अलावा सरबत दा भला के माझा जोन के प्रसिडेंड सुखबिन्दर सिह भी वहा मौजूद थे।
इस मुश्किल हालात में सरबत दा भला ट्रस्ट कीरत सिह के लिए मसीहा बनकर आया। गरीब और लाचार लोगो के बीच मसीहा नाम से फेमस डा ओबराय के संचालन में देश भर में संचालित सरबत दा भला ट्रस्ट के माझा जोन के प्रसीडेन्ट सुखविन्दर सिह ने कीरत सिह से वादा किया कि वो उनकी बेटी के शव को वापस हिन्दुस्तान लेकर आयेगे। जब डा ओबराय को इस पूरे केस के बारे में पता चला तो उन्होंने तुरन्त दुबई के भारतीय दूतावास में बात की। डा ओबराय ने भारतीय दूतावास के जरिये मनप्रीत के शव को वापस भारत लाने के लिए तमाम कानूनी कार्यवाहियो को पूरा करना शुरू कर दिया। आखिरकार दुबई में स्थित भारतीय दूतावास ने डा एस पी ओबराय को मनप्रीत के शव को भारत लाने की परमीशन दे दी।
ऐसा पहली बार नही है कि सरबत दा भला ट्रस्ट किसी भारतीये के पार्थिव शरीर को वापस भारत लेकर आया है। इससे पहले भी इस ट्रस्ट ने दुबई में मरने वाले लगभग 95 लोगो के शवों को उनके परिजनों तक पहुचाया है। दुबई में मरने वालों लोगो को उनके परिजनों तक पहुचाने के इस काम में सरबत दा भला ट्रस्ट को कई कानूनी कार्यवाहियो से गुजरना पड़ता है। शवों को अस्पतालों से निकालने से लेकर ऐयरपोर्ट तक पहुचाने में लगने वाले सभी खर्चे सरबत दा भला ट्रस्ट खुद करता है। कभी कभी शवों की शिनाख्त करने के लिए मरने वाले के घरवालों को भारत से दुबई ले जाने का काम भी ये ट्रस्ट खुद ही करता है।
इसके अलावा डा एस पी सिह दुबई की जेलो में बन्द लोगो का केस लड़के, उन्हे अपने देश वापस भी लेके आते हैl सरबत दा भला ट्रस्ट अब तक 89 ऐसे कैदियों को भारत ला चुका है जो दुबई की जेलों में सजा भुगत रहे थे। इसके अलावा इस ट्रस्ट ने गल्फ देशो में फसीं 5 लड़कियों को वहा से निकालकर वापस अपने मुल्क पहुचाया है। डा ओबराय आज भी लगभग 105 लडकियों को छुड़ाने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ रहे है।
इसके अलावा गरीबों को मासिक पेंशन, बेसहारा लोगो के लिए रैनबसेरा, बच्चों के स्कूल, अनाथालय, अस्पताल जैसे अनेक प्रोग्राम इस ट्रस्ट के जरिये देशभर में चल रहे है। सरबत दा भला ट्रस्ट गरीबों के लिए एक ऐसी उम्मीद है जहा के दरवाजे सभी धर्मो के लोगो के लिए हमेशा खुले रहते है।
सरबत दा भला के माध्यम से डा ओबराय ऐसे तमाम लोगो की जिन्दगी को बदलने में लगे हुए है जो गरीबी की वजह से अपनी बुनियादी जरूरतो को पूरा नही कर पाते। उन्होने सरबत दा भला नाम के नाम से जो चिराग भारतीय समाज में जलाया था आज उसकी रोशनी का उजाला कई घरों के अधेरों को मिटा चुका है जिसका दायरा लगातार बढ़ता जा रहा है।
आज सरबत दा भला एक ऐसी उम्मीद का नाम है जहा आने वाला कोई भी इन्सान कभी भी ना उम्मीद होकर नही जाता।
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